‘जनसरोकार’ के साथ शिवराज का पचमढ़ी ‘रिटर्न’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अब दो दिन तक पचमढ़ी में चिंतन-मनन करने के बाद भोपाल लौट आये हैं। जिन विषयों को मीडिया के सामने रखा उनसे एक बात तो निकल कर सामने आ रही है कि इस बार चिंतन का विषय जनसरोकार ही रहा है। जिन योजनाओं को नये कलेवर के साथ शुरू किया गया उनमें से ज्यादातर पुरानी तो हैं लेकिन उनके स्वरूप को बदल कर अधिक हितकारी बना दिया गया है। जिस प्रकार से कन्यादान योजना में राशि को 51 हजार करके कमलनाथ ने अपना दावा कर दिया था अब 55 हजार करके उसे छीनने का प्रयास शिवराज ने कर लिया है। लाड़ली लक्ष्मी योजना को भी अधिक लाभकारी बनाकर बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं। जबकि तीथदर्शन योजना को फिर से शुरू करके जन भावनाओं को अपने साथ रखने का प्रयास इस चिंतन बैठक के बाद सामने आ रहा है। राशन वितरण की बात हो या फिर अन्य योजनाएं हों जनता का सीधा जुड़ाव पहले भी शिवराज सिंह की पहल रही है। वे जनता के साथ सीधे संवाद करने और जुडऩे के पक्षधर रहे हैं तब उनकी सरकार की योजनाओं का जनसरोकार के साथ होना स्वभाविक भी है। ऐसे में पचमढ़ी से एक बार फिर 2023 की राह आसान करने की दिशा में प्रयास करती शिव सरकार दिखाई दे रही है।

इस बार परम्परा को थोड़ा बदला गया है। शिवराज सरकार नवाचार करने और देश को नई योजनाएं देने में सबसे आगे रहती है। लेकिन संजीवनी क्लीनिक देकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार की मोहल्ला क्लीनिक योजना को अपने हिसाब से लागू करने का साहस दिखाया है। इससे अस्पतालों की भीड़ से सामान्य मरीजों को राहत मिलेगी। मतलब यहां भी जनसरोकार ही दिखाई दे रहा है। जिन अस्पतालों को कोरोना काल के समय सुविधाएं और उपकरण दिये गये थे उन अस्पतालों को सुपर स्पेसिलिटी अस्पताल के रूप में परिवर्तित करने की योजना ने भी सरकार की सोच को रेखांकित किया है। कम खर्च और लाभ अधिक इसी प्रकार से लिया जा सकता है। सीएम राइज स्कूलों को समय से पहले चालू करने का रास्ता निकाला गया है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार ने सोशल क्षेत्र में इन्फ्रोस्ट्रेक्चर तैयार करने की दिशा में ठोस प्रयास किये हैं। कोरोना की विभिषिका से पार पाते ही सरकार को विकास की दिशा में चल पडऩा ही बताता है कि शिवराज सिंह चाहे सबसे अधिक समय के मुख्यमंत्री हो गये हों लेकिन उनका विजन सजृन करने का दायरा कम नहीं हुआ है।

अब केवल यह देखना शेष है कि प्रशासनिक मिशनरी की कसावट के बारे में क्या सोचा गया है? जिन मंत्रियों को सरकार बनाने के लिए मंत्री बनाया गया था उनको अब भी ढ़ोया जायेगा? या उन्हें बदलकर योग्य हाथों में मंत्रालय दे दिया जायेगा? जनसरोकार की योजनाओं का मूर्तरूप तभी सामने होता है जब क्रियान्वयन करने वाला अमला और उसे मानिटर करने वाला मानिटर भी रूचि और क्षमताओं से लैस हो। अन्यथा देश का कोई भी प्रभावशाली मुख्यमंत्री महीने में दो बार अधिकारियों को धमकाने के लिए अपनी जुबान को कष्ट नहीं देता। जनसरोकार को जनता तक पहुंचाने वाली शिव सरकार के अब नवाचार देखने को मिलेंगे, देखते हैं।

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