‘जनता’ ने ठुकरा दी सिन्हा द्वय-शौरी की ‘थ्योरी’

भोपाल। इस लोकसभा चुनावों में कई भ्रांन्तियों को भी समाप्त किया है। इतना बड़ा जनादेश है कि वे सभी विचारक भी धरे के धरे रह गये जो मोदी की आलोचना करने में गौरव की अनुभूति करते थे और देश को ऐसे समझाने का प्रयास करते थे कि मोदी रहेगा तो देश का न जाने क्या हो जायेगा? लेकिन देश के मतदाताओं ने तो सभी उन विचारों को मानने से ही इंकार कर दिया जो मोदी पर अंगुली उठाने का प्रयास कर रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार और विचारक अरूण शौरी ने मोदी को सीधे निशाने पर लिया था। लेकिन उनकी ईमारीदारी को जनता ने कोई भाव नहीं दिया। शत्रुघ्र सिंहा को तो वैचारिक लड़ाई में विरोधी विचार का दामन थामना पड़ा और जनता ने उन्हें संसद में भेजने के लायक नहीं समझा। यशवंत सिंहा को इसलिए पहले ही भाव नहीं मिलता था कि वे नैतिकता के साथ नहीं खड़े थे। बेटा सरकार में मंत्री और आप सरकार का विरोध कर रहे हैं। जिन ज्ञान को आप बांट रहे थे उसका प्रभाव पडऩा संभव नहीं था। इसलिए देश के मतदाताओं ने उनके विचार को स्वीकार नहीं किया। मोदी को जिस जनादेश से काम करने का आदेश दिया है उससे यह भावना बलवती हुई है कि देश का विचार मोदी के साथ चलने का है। सिन्हां द्वय और अरूण शौरी का विचार तो धराशाही हुआ ही लेकिन उन नेताओं का विचार भी मान्य नहीं हुआ जिन्होंने भाजपा को छोड़ा था?
सबसे पहले शत्रुघ्र सिंहा ने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा लेकिन जनता ने उनका हाथ छोड़ दिया और वे चुनाव में बड़े अन्तर से हार गये। कीर्ति आजादी ने भाजपा छोड़ी तो वे भी चुनाव हार गये। जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह ने भाजपा छोड़ी चुनाव हार गये। शत्रु ने भाजपा से पंगा नहीं लिया बल्कि मोदी से उनका राजनीति विवाद हो गया था। अरूण शौरी ने राफेल मामले में खुल कर मैदान थाम लिया था जबकि वे मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते ही रहे हैं। यशवंत सिंहा ने बिगुल बजा दिया था। वे आर्थिक नीतियों्र विदेश नीति और अन्य कार्यक्रमों को रेखांकित करके मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। हद तब हो गई थी जब ममता के आयोजन में भी चले गये और कांग्रेस के साथ भी मिलने को तैयार हो गये। मीडिया ने इन सबको स्थान दिया लेकिन मतदाता ने कोई भाव नहीं दिया। इनकी बातों में कितना दम था यह परखने के दो ही पैमाने होते हैं पहला जनादेश क्या कहता है या फिर उनके साथ खड़े होने वालों की संख्या कितनी है?
इन्होंने जो थ्योरी दी थी वह काम नहीं आई। जनता ने उसे अस्वीकार कर दिया। वस्तुत: इसका सबसे बड़ा कारण था कि मोदी ने जिन नीतियों को अपनाया वे सभी के जिलए थीं। महत्वपूर्ण व्यवसायियों को व्यापार करने में सकायक थीं लेकिन र्ईमानदारी के साथ व्यापार करने पर। इसलिए अनिल अंबानी को 30 करोड़ दे दिये यह गले नहीं उतरा। मोदी सरकार गरीब विरोधी है, किसान विरोधी है वह इसलिए गले नहीं उतरा कि गरीब तो सीधे लाभ से खुद ही रूबरू हो रहा है। किसान को स्वामीनाथन कमेटी का लाभ तो मिला चाहे वह आधा अधुरा ही क्यों न हो। ना मामा से काणा मामा ही अच्छा होता है। इसलिए देश के मतदाताओं सिन्हा द्वय और शौरी की थ्योरी को अस्वीकार कर चुका है।

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