‘गुलेरिया’ बोले दो घटनाओं से पहुंचे कोरोना के ‘करीब’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। एम्स के डायरेक्टर डा. रणदीप गुलेरिया का मत है कि दो कारणों से हम कोरोना के अधिक करीब और तेजी से करीब पहुंचे हैं। इन दोनों ही बातों से बचा जा सकता था। लेकिन तीसरी भी एक बात है जिसका उल्लेख आने वाले दिनों में होगा ही। डा. गुलेरिया ने मीडिया से बात में बताया कि जब वैक्सीन आ गई तब हम याने कि आम व्यक्ति लापरवाह हो गया। उसे लगा कि ईलाज तो आ गया। दूसरे देश उत्सवधर्मी है। कुंभ हो या त्योंहार हमेशा भीड़ को आकर्षित करते ही हैं। इसलिए भीड़ कोरोना को फैलने का सबसे आसान और सरल तरीका है। इसके साथ ही धीरे से डा. गुलेरिया कहते हैं कि चुनावों में जिस प्रकार की भीड़ है उसने भी कोरोना को तेजी से फैलाया है। ऐसा तो हो नहीं सकता कि कोरोना चुनाव से डर कर या नेताओं के भाषणों से संमोहित होकर प्रहार करने की अपनी क्षमता को कम कर देगा। ये दोनों ही बातें मायने रखती हैं। भीड़ ने भारत को इतनी तेजी से कोरोना के जबड़े में पहुंचा दिया है। हमको इनसे बचना चाहिए। हालांकि इतने बड़े डाक्टर का इतना सतही आंकलन कुछ समझ में नहीं आया। टीवी चैनलों पर डाक्टरों के शोध पत्र जिस प्रकार का आकलन पेश कर रहे हैं उससे यह भिन्न ही दिखाई देता है। लेकिन शासकीय नियंत्रण को लेकर अधिक विस्तार न देना भी यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कुछ बोला और कुछ छुपाया जा रहा है।

इस बात को तो कोई भी समझता है कि अधिक भीड़ में जाना कोरोना को आमंत्रण देना है। लोगों ने इस आमंत्रण को थोक में दिया है और कोरोना उसे स्वीकार भी किया है। यही कारण है कि पहले दौर में दो लाख रोज का आकंड़ा कभी भी नहीं आया। जिन लोगों को जनता में रहना है वे तो आज भी पहले की भांति संक्रमित हो रहे हैं वे भी संक्रमित हो रहे हैं जिसका जनता से कोई ज्यादा वास्ता नहीं है। लेकिन अभी यह शोध होना शेष है कि मौसम के हिसाब से होने वाली स्थिति तबियत खराब को कोरोना से कितना जोड़कर देखा जाये। जांच के तरीकों पर सवाल उठाये जा रहे हैं जबकि यह सच है कि देश में जितनी तेजी से कोरोना के आकंड़े आ रहे हैं वह चिन्ता को बढ़ाने वाले हैं। यही बात सांकेतिक भाषा में डा. गुलेरिया ने कही है। उन्हें चुनाव में उमड़ रही भारी भीड़ और कुंभ में आ रहे लाखों लोगों का जमावड़ा अधिक खतरनाक दिखाई दे रहा है। लोगों की लापरवाही भी दिखाई दे रही है। वैक्सीन के कारण छाई लापरवाही ने भी लोगों को संक्रमित होने में मदद की है।

इसी के साथ एक पक्ष यह भी है कि राजनीतिक नेतृत्व की जनस्वीकार्यता  की परीक्षा भी हो रही है। पिछली लहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता को भुनाया और लोगों को सुरक्षित कर लिया। लेकिन अब राहुल गांधी के कहने पर प्रदेश नेतृत्व को जिम्मेदारी दी गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि लोग कहना ही नहीं मान रहे हैं। प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए और मुख्यमंत्रियों को समझाने की बजाये जनता से सीधे बात करना चाहिए। राहुल गांधी तो आग में घी डाल कर चले गये। पहले भी भीड़ को किराया देने की बात की थी और सरक लिये थे। आज भी प्रदेशों की सरकारों को दाव पर लगा दिया और लोग दुखी हो लिए। लेकिन हाल-बेहाल हो गये।

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