‘गुलेरिया’ बोले दो घटनाओं से पहुंचे कोरोना के ‘करीब’
इस बात को तो कोई भी समझता है कि अधिक भीड़ में जाना कोरोना को आमंत्रण देना है। लोगों ने इस आमंत्रण को थोक में दिया है और कोरोना उसे स्वीकार भी किया है। यही कारण है कि पहले दौर में दो लाख रोज का आकंड़ा कभी भी नहीं आया। जिन लोगों को जनता में रहना है वे तो आज भी पहले की भांति संक्रमित हो रहे हैं वे भी संक्रमित हो रहे हैं जिसका जनता से कोई ज्यादा वास्ता नहीं है। लेकिन अभी यह शोध होना शेष है कि मौसम के हिसाब से होने वाली स्थिति तबियत खराब को कोरोना से कितना जोड़कर देखा जाये। जांच के तरीकों पर सवाल उठाये जा रहे हैं जबकि यह सच है कि देश में जितनी तेजी से कोरोना के आकंड़े आ रहे हैं वह चिन्ता को बढ़ाने वाले हैं। यही बात सांकेतिक भाषा में डा. गुलेरिया ने कही है। उन्हें चुनाव में उमड़ रही भारी भीड़ और कुंभ में आ रहे लाखों लोगों का जमावड़ा अधिक खतरनाक दिखाई दे रहा है। लोगों की लापरवाही भी दिखाई दे रही है। वैक्सीन के कारण छाई लापरवाही ने भी लोगों को संक्रमित होने में मदद की है।
इसी के साथ एक पक्ष यह भी है कि राजनीतिक नेतृत्व की जनस्वीकार्यता की परीक्षा भी हो रही है। पिछली लहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता को भुनाया और लोगों को सुरक्षित कर लिया। लेकिन अब राहुल गांधी के कहने पर प्रदेश नेतृत्व को जिम्मेदारी दी गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि लोग कहना ही नहीं मान रहे हैं। प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए और मुख्यमंत्रियों को समझाने की बजाये जनता से सीधे बात करना चाहिए। राहुल गांधी तो आग में घी डाल कर चले गये। पहले भी भीड़ को किराया देने की बात की थी और सरक लिये थे। आज भी प्रदेशों की सरकारों को दाव पर लगा दिया और लोग दुखी हो लिए। लेकिन हाल-बेहाल हो गये।