गांधी परिवार से छुटकारा चाहती है कांग्रेस?

नई दिल्ली (विशेष प्रतिनिधि )। वैसे तो इस बात का कुछ हिस्सा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपनी बातचीत में कह दिया था। फिर भी कांग्रेस के खास लोगों के बीच यह बात शुरू हुई है कि क्या कांग्रेस का कायाकल्प होने जा रहा है? जिस गांधी परिवार के सहारे कांग्रेस बढ़ी थी उसी परिवार के क्रियाकलापों से वह रसातल की ओर पहुंच चुकी है। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं का एक समूह क्या अब गांधी परिवार से कांग्रेस की मुक्ति चाहता है? इस प्रकार के अनेकों सवाल कांग्रेस के अंदर खाने में तेजी से पूछे जा रहे हैं।

खास बातें :–

  • जब राहुल गांधी न्यायालय के समक्ष 3 से अधिक मामलों में माफी मांग चुके हैं तब इस मामले में बचकर निकालने का प्रयास क्यों नहीं हुआ?
  • पवन खेड़ा मामले में हवाई जहाज रोककर जमानत कराई गई लेकिन राहुल मामले में उतनी ही उदासीनता बरती गई।
  • जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दो या इससे अधिक वर्ष की सजा के बाद सदस्यता स्वमेव समाप्त हो जाती है। फिर सदस्यता बचाने के प्रयास क्यों नहीं किए गए?
  • कांग्रेस के पास देश के नामचीन वकीलों की एक लंबी लिस्ट है। गांधी परिवार के प्रति वफादारों की भी बड़ी फहरिस्त है तब भी सब तरफ से गफलत क्यों हुई?
  • इसका मतलब यह निकाला जा रहा है  कि राहुल की सदस्यता समाप्त करने में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की भूमिका भी कम नहीं है।
सूरत न्यायालय के आदेश के बाद 24 घंटे तक राहुल गांधी की सदस्यता को बचाए जाने के संबंध में कोई प्रयास नहीं किए गए। कांग्रेस के प्रथम  पांत के नेताओं में से बड़ी संख्या में सर्वोच्च न्यायालय के वकील है। जो वकील पत्रकार वार्ता के माध्यम से तथ्यों पर लोकसभा और सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे थे उन्होंने सदस्यता बचाने के संबंध में प्रयास नहीं किए। इस प्रकार के आरोप अब कांग्रेस के अंदर खाने से ही उठना शुरू हो गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि गांधी परिवार के वफादार वकीलों की संख्या कांग्रेस पार्टी में कम है। इसलिए राहुल गांधी की सदस्यता ना बचे इसमें पार्टी के कुछ खास नेताओं के शामिल होने की आशंका पर परिवार के समर्थक विचार कर रहे हैं।

जनप्रतिनिधित्व कानून यह स्पष्ट करता है कि किसी भी जनप्रतिनिधि को आपराधिक मामले में दो वर्ष या इससे अधिक की सजा होने की स्थिति में सदन की सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाएगी। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी के मामले में कांग्रेस पार्टी का समय पर सक्रिय नहीं होना पार्टी की अंदरूनी लड़ाई को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त उदाहरण दिखाई दे रहा है। जिस अध्यादेश को राहुल गांधी ने फाड़ा था उसके जारी न होने की स्थिति में सदस्यता जाने कका जोखिम सामने आ गया।  फिर भी सभी तरफ खामोशी बनई रही।  कमोवेश ऐसी ही मांग जी24 के सदस्यों के द्वारा की जाती रही है। हालांकि उसको आंशिक रूप से माना गया और पार्टी का मुखिया गैर गांधी परिवार के व्यक्ति को बनाया गया। जी 24 के अनेकों नेताओं को पार्टी से किनारे कर दिया गया फिर भी जो शेष बचे हैं वे गांधी परिवार से दूरियां कराने की स्थिति में भूमिका अदा कर रहे हैं।

जनप्रतिनिधित्व कानून की जानकारी रखने वालों का कहना है कि यदि ऊपर की अदालतों में राहुल गांधी को पर्याप्त लाभ नहीं मिला तो वे लोकसभा के अगले 2 चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। जिससे विपक्षी नेताओं में राहुल गांधी की दावेदारी अपने आप समाप्त हो जाएगी। हालांकि विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इसी बात को समझ कर उनके समर्थन में उतरी हैं। अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी का सामने आना इसी राजनीति का हिस्सा है। दोनों नेता समझते हैं जनप्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत राहुल गांधी अब चुनाव नहीं लड़ सकते इसलिए उनका रास्ता साफ हो रहा है।

राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस की ओर से उन्हें शहीद की भूमिका में रखते हुए राजनीतिक लाभ लेने की योजना पर काम शुरू किया गया है। श्रीमती प्रियंका वाड्रा के माध्यम से जो बयान सामने आए हैं उसमें भी राजनीतिक भाषा के साथ वह सही कहा गया है जो लंबे समय से राहुल लगातार कहते आ रहे हैं। भाजपा की ओर से इस प्रकार के बयानों की संभावना को ताड़ते हुए पहले से ही काट की तैयारी कर ली थी। इसलिए भाजपा अधिक नुकसान में रहने वाली नहीं है। राजनीतिक रूप से इस मामले को जनता के बीच में गर्म बनाए रखने के लिए कांग्रेस के पास इतनी सांगठनिक क्षमता नहीं है। भाजपा इसे जन प्रचार का बड़ा माध्यम बनाने जा रही है। इस प्रकार के माना जा सकता है कि भाजपा ने परिस्थितियों का लाभ उठाने की पूरी कोशिश की है वही कांग्रेस के अंदर खाने में गांधी परिवार को पार्टी संगठन से दूर रखने के लिए एक दूर की कौड़ी खेली गई है। कांग्रेस में अनेकों ऐसे लोग हैं जो यह कहते मिल रहे हैं कि राहुल गांधी को वकीलों की आपेक्षिक मदद नहीं होने के कारण शिकार होना पड़ा है।

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