‘गांधी’ की किसको पड़ी राजनीति कर रहे हैं ‘बधेल’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। रायपुर की धर्म संसद जिसको नीलकंठ सेवा समिति जिसके संस्थापक एनसीपी के राष्ट्रीय सचिव नीलकंठ त्रिपाठी है और दुधधारी मठ जिसके मुखिया कांग्रेस के पूर्व विधायक और छग गो सेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुन्दर दास हैं, ने आयोजित किया था। इसमें संत कालीचरण को क्यों आमंत्रित किया गया यह पहला सवाल है? फिर भी महात्मा गांधी को असम्मानसूचक शब्दों का संबोधन नहीं करना चाहिए था। इससे वे सब सहमत हैं जो हिन्दूओं के भगवान को गालियां देने वालों से ऐसी ही अपील करते रहते हैं। यह मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि इससे महापुरूषों का आदर गिरने का सिलसिला शुरू हो जायेगा जैसा कि महापुरूषों को दल और जातियों में बांटने से शुरू हो चुका है। ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा की गई कार्यवाही का अधिक विरोध नहीं हो पाया। वैसे भी ब्राह्मणों के प्रति अपमानजनक भाषा बोलने के लिए मुख्यमंत्री बघेल ने अपने पिता को ही जेल भिजवा दिया था उनसे यहां भी इसी प्रकार की कार्यवाही की अपेक्षा थी। यहां संत कालीचरण की भाषा पर आपत्ति का विषय है जबकि महात्मा गांधी के हिन्दूओं के प्रति व्यवहार का मामला हर बार बहस का विषय रहा है और बहस का अन्त कभी भी निर्णयात्मक नहीं रहता। यहां तक तो सब ठीक ही कहा जा सकता है।

जब मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने गिरफ्तारी में मध्यप्रदेश की पुलिस को सूचना न देने के मामले को उठाया तो मानों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल फट ही पड़े। गृहमंत्री का जवाब गृहमंत्री से दिलवा दिया जा सकता था लेकिन गांधी के सम्मान से किसको लेना देना था? यहां तो राजनीति करना थी। भूपेश बघेल ने सीधे गांधी को गाली देने वाले को गिरफ्तार करने पर दुख हुआ या खुशी का सवाल पूछ लिया। यह राजनीति की शुरूआत थी। नरोत्तम मिश्रा ने राजनीतिक संयम बरता और बघेल को ही बेनकाब होने दिया। अगली खबर यह आई कि भूपेश बघेल ने इस मामले में गोडसे, सावरकर और देश को बांटने तक ला दिया। मतलब साफ है कि संत कालीचरण ने गांधी को गाली दी इससे कोई मतलब छत्तीसगढ़ सरकार को नहीं था वे तो इसकी आड़ में राजनीति करना चाहते हैं और उन्होंने बिना देर किए कर ही दी। छग भाजपा के नेताओं ने सवाल उठाया और गिरफ्तारी को गलत बताकर विरोध किया उससे वहां की सरकार को कोई प्रभाव नहीं पड़ा। न्यायालय ने मामले में छग पुलिस को रिमांड न देकर न्यायिक हिरासत में भेजने से भी स्पष्ट होता है कि पुलिस के तर्कों में कोई दम नहीं है।

कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं का धर्म संसद से क्या लेना देना? वे तो राजनीति करने के लिए सब कर रहे थे और उनका मकसद पूरा हो गया। जिस देश में हिन्दूओं के भगवान को गाली देने वालों, चौकीदार को चोर कहने वाले, सेना प्रमुख को गली का गुंडा और सैन्य कार्यवाही को सवालों में घेरने वालों को जेल नहीं भेजा जाता उसी देश में महात्मा गांधी के बारे में अपशब्द कहने पर जेल भेज दिया जाता है। यह समझ में आ गया कि छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया राजनीति कर रहे हैं। इसमें सबसे गंभीर पक्ष यह है कि हिन्दू संत की आड़ लेकर राजनीति करने का पुराना फंडा अपनाया गया है। वैसे भी संतों पर राजनीति करने का सिलसिला पुराना तो है ही।

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