‘कोरोना’ विस्फोट है जरा संभल कर चलें ‘जनाब’

सुरेश शर्मा

भोपाल। सुबह के समाचार पत्र यह बता रहे हैं कि राजधानी भोपाल में कोरोना का विस्फोट हो रहा है। मतलब पर्याप्त जांच के बाद 345 पॉजिटिव मिले हैं। यह आंकड़ा उन दिनों की याद दिलाता है जब कोरोना को लेकर देश और प्रदेश भयाग्रस्त हुआ करते थे। इतना तो सच है कि उन दिनों ईलाज का फार्मूला नहीं मालूम था। ईलाज की अधोसंरचना नहीं हुआ करती थी। एक साथ इतने मरीजों को संभालने वाला तंत्र नहीं हुआ करता था। लेकिन आज यह सबकुछ है जो बीमारी को नियंत्रित कर सके और बीमार को ईलाज दे सके। इसलिए सरकार कम सख्त हो गई और जनता लापरवाह। जनता को दोष अधिक है। लेकिन वह भी क्या करे कोरोना कार्यकाल ने उसकी माली हालत को बिगाड़ दिया। परिवार का पालन करने के लिए जिस प्रकार की मशक्कत करना पड़ रही है उसका असर यह है कि किसी न किसी को तो जोखिम उठाकर घर चलाने लायक कमाना ही पड़ रहा है। इसलिए सरकार सख्ती करना भी चाह रही है और व्यवस्था भी बिगाडऩा नहीं चाह रही है। यह सरकार की ओर से सन्तुलन है। अब केवल मनुष्यों के यहां भी ऐसा ही सन्तुलन बना लिया जायेगा तो सबठीक हो जायेगा? मध्यप्रदेश के तीन शहर तकलीफ दे रहे हैं। जिसमें एक है राजधानी।

राजधानी जहां पर प्रशासन के आला अधिकारी रहते हैं। यहां सरकार के संचालन करने वाले रहते हैं। तब हालात को जल्द नियंत्रण में होना चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। प्रशासन तंत्र बेअसर होता दिख रहा है। वह जिले की जनता पर दबाव बनाने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रहा है। भीड़ बाजारों में भी है और पिकनिक स्थलों पर भी है। सबसे चिंता की बात यह है कि लोग किसी दूसरे की मान ही नहीं रहे हैं और जोखिम से रूबरू हो रहे हैं। तर्क ऐसे की कोई उन्हें काट ही नहीं पाता है। अब कहा जा रहा है कि आंकड़े सरकार के द्वारा मेन्युप्लेट किये हुये हैं। जहां चुनाव हो रहे हैं सभा में भारी भीड़ है वहां पर कोरोना क्यों नहीं फैल रहा है जबकि महाराष्ट्र में तो चुनाव नहीं हैं? मध्यप्रदेश में तो निकाय चुनाव भी घोषित नहीं हुये हैं। दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि लोग वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं इसलिए संख्या अधिक दिखाई जा रही है ताकी भयग्रस्त होकर वैक्सीन लगवा लें। लेकिन इन सभी तर्कों के बीच मे भी कोरोना की दूसरी लहर आ गई है। उसका दुष्प्रभाव भी देखने में आ रहा है। बीमारों की संख्या भी बढ़ रही है और मरने वाली संख्या भी अधिक हो गई है।

तर्क अपनी जगह हैं। तर्क ईलाज नहीं होता। तर्क आत्म सन्तुष्टि पैदा कर सकता है पर बीमारी दूर नहीं कर सकता है। इसलिए संभल कर चलिए जनाब कोरोना हमला कर सकता है। इस बीमारी की खास बात यह है कि यह एक को होती है तब परिवार के बाकी लोग कब चपेट में आ जाते हैं पता ही नहीं चलता। जरा सी चूक की दुर्घटना घटी। इसलिए संभलने की खुद ही जरूरत है। सरकार या प्रशासन आपके यहां आयेगा और आपकी सुरक्षा करेगा ऐसा नहीं मानना चाहिए। उसकी भूमिका तो ईलाज कराने की है। अब तो धनराशि भी देना बंद कर दी है। इसलिए अधिक संभलकर चलने की जरूरत है जेब और सेहत दोनों को बचाने की जरूरत है।

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