‘कोरोना’ मौतों की समीक्षा और रोकने पर चर्चा ‘जरूरी’
से जुड़ा है जिन्होंने घरों से कुछ लोगों को खोया है। वे आज सोच रहे हैं कि आखिर बेहतरीन ईलाज के बाद भी उनके परिजन की मौत कैसे हो गई? मौत के बाद भी इतना भारी भरकम बिल भरना पड़ रहा है। शिकायतों के बाद कई शहरों में रकम वापस भी करवाई और प्रकरण भी दर्ज किये। तब यह जरूरी है कि सरकार कोई ऐसा मैकेनिज्म तैयार करे जिससे यह पता चल सके कि क्या इतनी मौतों को रोका जा सकता था? संभावित तीसरी लहर में बच्चों की हानि कम से कम हो इसके लिए यह मंथन काम आयेगा। इसमें मौत के कारणों, दवाओं के प्रयोग और उससे नई महामारी के जन्म के कारणों, वैक्लिपिक दवा पद्याति का उपयोग और मरीज के मन में उत्पन्न भय को तो मौतों का कारण नहीं माना जाये? इन सवालों के जवाब किसी भी महामारी में अत्याधिक सहायक सिद्ध होगें। इसकी मांग जरूर कहीं से नहीं आई है लेकिन मीडिया तक बात पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है। वैसे भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान का एक हिस्सा स्वत: इस बात को प्रमाणित कर रहा है। जिसमें वे बच्चों के साथ मां-बाप बीमारी के वक्त साथ रहने के लिए टीकाकरण की बात कह रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीसरी लहर की बात की और कहा कि हमने बच्चों के ईलाज के लिए सभी जरूरी इंतजाम कर लिये हैं। इसी के बाद वे कहते हैं कि बच्चों को अकेले अस्पताल में न रहना पड़े इसके लिए 12 साल से छोटे बच्चों के माता-पिता को अनिवार्य रूप से प्राथमिकता के आधार टीकाकरण कर लिया जाये। इससे यह बात प्रमाणित हुई है कि दूसरी लहर में मरने वालों का एक बड़ा आंकड़ा इस कारण भी है कि मौत को तांडव करते देख कर मरीज का हौसला टूट गया और उसका आक्सीजन लेवल कम हो गया। ऐसा मानने वालों में कई बड़े डाक्टर हैं। भोपाल के सरकारी हमीदिया अस्पताल के डाक्टरों के पारिवारिक माहौल ने कई मरीजों को वापस घर पहुंचा दिया जबकि कई बड़े अस्पतालों के डाक्टरों के रूखे व्यवहार के कारण कई मरीजों के बेमतलब प्राण भी चले गये। इसकी समीक्षा होना चाहिए। जिस प्रकार से एलोपैथिक दवाईयां दी गई और एक महामारी से बचने के लिए दूसरी महामारी आ धमकी, इसकी समीक्षा करने की भी जरूरत है। इससे बचने के लिए आईएमए ने आयुर्वेद के पक्षधर बाबा रामदेव पर मुकदमा करके विषय को भटकाने का प्रयास किया है।
डाक्टरों को अपने अनुभव के आधार पर शोध तैयार करना चाहिए और महामारी से निपटने के लिए किस प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए इस पर राय और अनुभव को सांझा करना चाहिए। यह पहल सरकार को करना चाहिए। केन्द्र सरकार करे या राज्यों की सरकारें लेकिन करना चाहिए। मौतों की संख्या को लेकर पक्ष-विपक्ष का भिडऩा ऐसी राजनीति है जिसे लाशों पर रोटियां सेंकना कह सकते हैं लेकिन यदि लाशों की इतनी संख्या के बाद भी उसके कारणों पर चर्चा न करना यह माना जायेगा कि आप लाशों को हजम कर गये। वास्तव में इतनी मौतें एक भयावह दर्द हैं।