कैंसर मरीजों के इलाज में जीएमसी की लापरवाही

ब्रेकी थेरेपी मशीन में लगने वाली दवा अभी तक नहीं मंगाई 
भोपाल।
राजधानी के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) प्रबंधन की कैंसर मरीजों के इलाज में बड़ी लापरवाही सामने आई है। कैंसर की बीमारी वाले गरीब मरीजों की सिकाई यहां नि:शुल्क होती थी, वह अब बंद हो चुकी है। कैंसर मरीजों की सिकाई के लिए ब्रेकी थेरेपी मशीन में लगने वाली दवा (रेडियोएक्टिव पदार्थ) हफ्ते भर से खत्म है। कॉलेज प्रबंधन को छह महीने पहले से यह पता था कि मई में दवा खत्म हो जाएगी। इसके बाद भी कॉलेज प्रबंधन ने दवा नहीं खरीदी। मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से यह दवा खरीदी जाती है। कॉलेज प्रबंधन ने करीब हफ्तेभर पहले दवा खरीदी की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन दवा आने में करीब एक महीने लग जाएंगे। तब तक सिर्फ पुराने मरीजों की ब्रेकी थेरेपी की जाएगी। सभी तरह के कैंसर के मरीजों में ब्रेकी थेरेपी से सिकाई की जाती है, लेकिन बच्चेदानी के कैंसर में यह सबसे ज्यादा कारगर है। इस मशीन में सिकाई के लिए लगने वाली दवा छह महीने के लिए आठ लाख रुपए में आती है। नए-पुराने मिलाकर हर दिन तीन-चार मरीजों की इस मशीन से सिकाई की जा रही थी। अब नए मरीजों को सिकाई के लिए निजी अस्पताल जाना पड़ेगा। निजी अस्पतालों में एक बार की सिकाई का खर्च करीब 5 हजार रुपए आता है। हमीदिया में सिकाई मुफ्त होती है। कैंसर की सिकाई के लिए यहां पर कोबोल्ट-60 मशीन भी लगी है। यह 35 साल पुरानी है। हमीदिया के डॉक्टरों के मुताबिक यह देश की सबसे पुरानी कोबाल्ट-60 मशीन है। इस मशीन में सिकाई के लिए लगने वाली दवा (सोर्स) इसी साल अगस्त से खत्म होने जा रही है। इसके बाद मरीजों की परेशानी और बढ़ जाएगी। कॉलेज प्रबंधन अब इस मशीन के लिए दवा खरीदने के पक्ष में नहीं है।
     इसकी वजह यह है कि दवा कम से कम 10 साल की लिए खरीदी जा सकती है। इसकी कीमत करीब 80 लाख रुपए है। मशीन की लाइफ लगभग खत्म हो चुकी है। ऐसे में सोर्स पर 80 लाख रुपए खर्च करने के पक्ष में कॉलेज प्रबंधन नहीं है। हमीदिया अस्पताल के रेडियोथेरेपी विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि कोबाल्ट-60 के नहीं होने पर ब्रेकी थेरेपी भी बेकार हो जाएगी। वजह, कोबाल्ट मशीन से सिकाई के बाद ही ब्रेकी थेरेपी दी जाती है। कोबाल्ट से हर दिन 20 मरीजों की सिकाई की जा रही है। हमीदिया समेत प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में पीपीपी मोड से लीनियर एक्सीलरेटर लगाया जाना है। यह कैंसर की सिकाई के लिए अत्याधुनिक मशीन है। इसके आने के बाद कोबाल्ट-60 की जरूरत नहीं रह जाएगी। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय के अधिकारियों ने बताया कि यह मशीन लगाने के लिए टेंडर डॉक्यूमेंट तैयार किया जा रहा है। शासन से अनुमति मिलने के बाद टेंडर जारी किया जाएगा। पार्टी मिलने पर मशीन लगाने में करीब छह महीने लग जाएंगे। इस तरह इस साल मशीन शुरू हो पाना मुश्किल है। निजी अस्पतालों में इस मशीन से पूरी सिकाई का खर्च 19 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक है। इस बारे में ञीएमसी के रेडियोथेरेपी विभाग के एचओडी डॉ. ओपी सिंह का कहना है कि ब्रेकी थेरेपी की दवा लगभग खत्म है। सिर्फ पुराने मरीजों की सिकाई की जा रही है। अगस्त से कोबाल्ट मशीन भी बंद हो जाएगी। कोबाल्ट के बंद होने पर ब्रेकी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। दवा मंगाने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर को पत्र भेज दिया गया है।

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