किसान आन्दोलन का टिकैत संस्करण
वह दिन याद है जब तीन कृषि सुधार बिलों के विरोध में आन्दोलन शुरू हुआ था। वह आन्दोलन पंजाब से शुरू हुआ था। इसके लिए यूपी के दिग्गज किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के परिवार को न तो सांझा किया गया था न ही कोई सलाह ही ली गई थी। लेकिन बाद में सहयोग की जरूरत को देखते हुए भारतीय किसान यूनियन के नेता गाजीपुर बार्डर आ गये।
इसके बाद राकेश टिकैत लगातार आन्दोलन का प्रमुख चेहरा बनते चले गये। हिन्दी और ठेठ गवंई भाषा का प्रभाव पड़ता गया और किसान आन्दोलन में कौन किस दिशा में जायेगा यह राकेश को ही तय करने का अधिकार सा मिल गया। इस आन्दोलन में योगेन्द्र यादव जैसे रणनीतिकार भी शामिल हो गये इसके बाद भी राकेश का दबदबा आन्दोलन में कभी कम नहीं हुआ। आन्दोलन से दिल्ली घेरने की रणनीति पंजाब के किसान नेताओं की हो फिर भी राकेश की अनेदखी कोई नहीं कर पाया। मीडिया में भी राकेश सबसे अधिक उचित चेहरा रहे जिनको उन्होंने जरूरत पडऩे पर खड़ा कर लिया। लेकिन केन्द्र सरकार में टिकैत को अधिक भाव मिला हो इसका कोई प्रमाण नहीं है।
अब आन्दोलन के राजनीतिक विस्तार की बात की जाये तो भी सभाओं में टिकैत के भाषण मीडिया के केन्द्र में रहे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसान आन्दोलन शुरू पंजाब से हुआ होगा लेकिन अब टिकैत संस्करण ही चल रहा है। जानकारों का मानना है कि पंजाब के आन्दोलनकारी वापस हो जायेंगे तो टिकैत अधिक दिन तक आन्दोलन को संभाल पायेंगी इसकी संभावना कम ही है।
किसान आन्दोलन सफल हो गया या सरकार झक गई यह एक विषय है। लेकिन श्रेय का खेल टिकैत के आसपास ही चल रहा है। अन्य किसान नेताओं के नाम तो मीडिया के खास रिपोर्टिंग ग्रुप के अलावा कोई नहीं जातना जबकि सबसे अधिक पहचाने जाने वाला चेहरा राकेश का ही है। अब वे इतने सहासी हो गये हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही अविश्वस जता रहे हैं। जबकि पूरा विश्व उनका विश्वास करता है। प्रधानमंत्री मोदी और पूरी भाजपा खून का घूंट पीकर रह रही है क्योंकि उसे यह मालूम है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अविश्वास का संदेश जाने की उसे कितनी बड़ी कीमत चुकाना पड़ सकती है।