‘काली’ मां का भारत पर आशीर्वाद बोले ‘मोदी’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। देश का हर प्रबुद्ध हिन्दू यह जानता है कि इन दिनों एक बार फिर से हिन्दू मान्यताओं को विवाद में डाल कर नेरेटिव सैट करने का प्रयास किया जा रहा है। पहला तो यह कि हिन्दू मान्यताओं में भ्रम है जबकि दूसरा यह कि उनको अपमानित करके यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि देखिये हिन्दू तो हिंसक हो गया है। किताबों में बच्चों को पढ़ाया जाता है कि अभिमन्यु लेट सोकर उठता है वह मंजन भी नहीं करता जबकि आबिद सब अच्छा-अच्छा ही करता है। असम के मुस्लिम नेता कहते हैं कि हमारे पूर्वज हिन्दू ही थे उन्हें इस्लाम अच्छा लगा इसलिए उन्होंने इसको स्वीकार कर लिया। साथ में वे कहते हैं कि इसलिए कुर्बानी गाय की न दें। वाराणसी में शिवलिंग पर वजू करने की बात सामने आई तो हिन्दू समाज ने कोई उग्र प्रतिक्रिया नहीं बल्कि न्यायालय की शरण में गये जबकि एक भाजपा प्रवक्ता ने पैगम्बर साहब को लेकर टिप्पणी की तो उसका समर्थन करने वालों का सर तन से अगल करने का नारा भी दिया गया और उसे अंजाम भी दिया गया। यह हिन्दू मुसलमान का मामला नहीं है यह दो धर्मों की मान्यताओं और उसके मानने वालों के संस्कारों का। इसे राजनीतिक दल हवा दे रहे हैं और नुकसान चाहे समाज का हो जाये या देश का उन्हें वोटों की फसल से मतलब है। बात यहीं नहीं रूकी है।

देश में धार्मिक अराजकता तो जुलुस में पथराव के समय से ही हो गई थी। उसे शान्त करने का तरीका आज भी सवालों के दायरे में है। इसका विपरीत असर यह हुआ कि उदयपुर की बर्बर घटना हो गई और महाराष्ट्र में भी आतंक दिखा दिया गया। भारत वर्ष ज्वालमुखी पर तो खड़ा है लेकिन दूसरी तरफ शान्ति दिखाई दे रही है। यह आग भडक़े इसके लिए बंगाल की राजनीति से एक शोला फैंका गया। ममता की सांसद ने उस काली मां के अपमान की घटना को संरक्षण देने का प्रयास किया गया जिसका सभी ओर से विरोध हो रहा था। कारण यह है कि भारत की राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला पदारोहण करने जा रही है। उसका विरोध ममता ने कर दिया अपना प्रत्याशी देकर। ऐसे में उन्हें कालीमां का अपमान करवाने में क्या गुरेज होगा। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बोलना पड़ा। नाम न लेकर प्रधानमंत्री ने पद की गरिमा को भी कायम रख लिया और देश को संदेश दे दिया कि काली मां की पूजा बंगाल में प्रधानता से होती है वहां की सरकार और वहां की सरकारी पार्टी की सांसद यदि काली मां के बारे में छिनौने विचार रखती हैं रखें लेकिन देश पर काली मां का आशीर्वाद है। प्रधानमंत्री के एक बयान ने देश की अवधारणा को सामने रख दिया।

हमेशा मानने की बात यह है किगंदगी कभी आदर्श नहीं हो सकती। यदि काली का चरित्र करने वाला कालाकार यदि सिगरेट का सेवन करता है तो उसका वीडियो बनाने की क्या जरूरत थी? मतलब यह है कि वह भावनाओं के साथ खेलना चाहते हैं। उसका समर्थन करने वाले भी भावनाओं का अनादर करना चाहते हैं। हिन्दू मान्यताओं के साथ ऐसा पहले भी होता रहा है आज भी हो रहा है। पहले और आज में अन्तर यह है कि पहले चुपचाप सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था लेकिन आज प्रतिकार और जवाब साथ-साथ मिल जाता है।

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