‘कांग्रेस’ के बिना कैसे होगा ममता का ‘खेला’
ममता ने हाल में विधानसभा के चुनाव में मोदी की भाजपा को पटकनी दी है। इसे पटकनी भाजपा की माना जाये या कांग्रेस व वाम दलों की इसमें मतान्तर है। भाजपा तीन से 77 हुई है जबकि कांग्रेस व वाम दल शून्य के स्कोर पर आकर अटके हैं। इसके बाद भी ममता विपक्ष की राजनीतिक धुरी में फिट होने का प्रयास कर रही हैं। वे मोदी से प्रधानमंत्री के नाते मिलती है तब राज्य हित की भावना रखती हैं लेकिन सोनिया गांधी से मिलती हैं तो पुराने बॉस से मिलने की मुद्रा अख्तियार कर लेती हैं। वे केजरीवाल से मिलती हैं जिसके साथ कांग्रेस नहीं बैठना नहीं चाहती। ममता मेंढक तौलने दिल्ली आई हैं जहां सपने में भी प्रधानमंत्री बनने का झटका लग जाता है और नेता जग जाते हैं। तब सवाल यह उठता है कि क्या विपक्षी नेतागण ममता को मोदी के सामने उतारने की घोषणा कर सकते हैं? ममता जब वापस कोलकाता जायेंगी तब उनके सामने वह सच होगा जिसकी वे कल्पना भी नहीं करके आईं होंगी। विपक्ष की एकता का सूत्र कहां से निकलता है यह अभी तक कोई पहचान नहीं पाया लेकिन सर सभी खापा रहे हैं।
अच्छा, समझने वाली बात यह है कि ममता बनर्जी सोनिया गांधी से भी मिली हैं और कमलनाथ से भी मिली हैं। मतलब कांग्रेस में ढ़हता सत्ता केन्द्र और ंसभावित सत्ता केन्द्र की चर्चा विपक्ष के नेताओं में अधिक शुरू हो गई है। इसलिए अब राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा इसको और समझना होगा। जब विपक्ष एक मोदी के सामने एकजुट होने का संदेश देता है तब देश यह तो समझ ही लेता है कि एक व्यक्ति सारे विपक्षियों के सामने अधिक ताकतवर है। जब देश ताकतवर नेता के हाथ से निकाल कर बिखरे और गैर विजन वाले नेताओं के हाथ में थमाने की गलती कौन करेगा? इसलिए मोदी के खिलाफ तभी मोर्चा कामयाब हो सकता है जब कोई नेता दूसरा मोदी बन पायेगा?