‘कांग्रेस’ के बिना कैसे होगा ममता का ‘खेला’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जब पांच दिन के लिए दिल्ली आईं हैं तब राजनीति का करवट लेना स्वभाविक था। वे देश भर में नारा देना चाह रही हैं कि अब देश में खेला होबे। लेकिन जब तक कांग्रेस का साथ नहीं मिलेगा तब तक खेला होबे की संभावना कैसे बनेगी? भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक टीवी चैनल की अदालत में कहा था कि गठबंधन तभी कारगर हो सकता है जब उसका नेतृत्व करने वाला दल सहयोग देने वाले दलों से अधिक संख्या में सांसद लेकर आये। इसलिए ममता बनर्जी के प्रयासों का अंत ठीक उसी प्रकार से होना है जिस प्रकार अरविंद केजरीवाल को मोदी के सामने चुनाव लड़ाने के बाद कहीं का भी नहीं छोड़ा। यूपी में माया व बबुवा की जीत के बाद हवा कमजोर हुई थी। अटल जी के शब्दों को देखा जाये तब विपक्षी गठबंधन तब तक ताकतवर नहीं हो पायेगा जब तक कांग्रेस उसकी अगुवाई न करे या फिर कई दलों का एक दल बन जाये और वह लोकसभा में कांग्रेस से अधिक सांसदों का समूह न बन जाये। इसलिए ममता का प्रयास अन्त तक आते-आते बिखर जायेगा? इसका प्रमाण तत्काल मिल भी गया। जब कांग्रेस के राज्यसभा में नेता मल्लिकार्जुन खडके के निवास पर विपक्षी सदस्यों की बैठक में ममता की पार्टी शामिल नहीं हुई।

ममता ने हाल में विधानसभा के चुनाव में मोदी की भाजपा को पटकनी दी है। इसे पटकनी भाजपा की माना जाये या कांग्रेस व वाम दलों की इसमें मतान्तर है। भाजपा तीन से 77 हुई है जबकि कांग्रेस व वाम दल शून्य के स्कोर पर आकर अटके हैं। इसके बाद भी ममता विपक्ष की राजनीतिक धुरी में फिट होने का प्रयास कर रही हैं। वे मोदी से प्रधानमंत्री के नाते मिलती है तब राज्य हित की भावना रखती हैं लेकिन सोनिया गांधी से मिलती हैं तो पुराने बॉस से मिलने की मुद्रा अख्तियार कर लेती हैं। वे केजरीवाल से मिलती हैं जिसके साथ कांग्रेस नहीं बैठना नहीं चाहती। ममता मेंढक तौलने दिल्ली आई हैं जहां सपने में भी प्रधानमंत्री बनने का झटका लग जाता है और नेता जग जाते हैं। तब सवाल यह उठता है कि क्या विपक्षी नेतागण ममता को मोदी के सामने उतारने की घोषणा कर सकते हैं? ममता जब वापस कोलकाता जायेंगी तब उनके सामने वह सच होगा जिसकी वे कल्पना भी नहीं करके आईं होंगी। विपक्ष की एकता का सूत्र कहां से निकलता है यह अभी तक कोई पहचान नहीं पाया लेकिन सर सभी खापा रहे हैं।

अच्छा, समझने वाली बात यह है कि ममता बनर्जी सोनिया गांधी से भी मिली हैं और कमलनाथ से भी मिली हैं। मतलब कांग्रेस में ढ़हता सत्ता केन्द्र और ंसभावित सत्ता केन्द्र की चर्चा विपक्ष के नेताओं में  अधिक शुरू हो गई है। इसलिए अब राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा इसको और समझना होगा। जब विपक्ष एक मोदी के सामने एकजुट होने का संदेश देता है तब देश यह तो समझ ही लेता है कि एक व्यक्ति सारे विपक्षियों के सामने अधिक ताकतवर है। जब देश ताकतवर नेता के हाथ से निकाल कर बिखरे और गैर विजन वाले नेताओं के हाथ में थमाने की गलती कौन करेगा? इसलिए मोदी के खिलाफ तभी मोर्चा कामयाब हो सकता है जब कोई नेता दूसरा मोदी बन पायेगा?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button