कांग्रेस की सोच में निकला शब्द है ‘हुआ तो हुआ’
जयकृष्ण गौड़
अमेरिकी दार्शनिक जाज संतायाना ने कहा है कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते, वे उसे दोहराने का दंड भुगतते हैं। भारत सनातन राष्ट्र है, हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत होने के साथ कई प्रकार के संघर्ष और युद्धों की घटनाएं इतिहास में दर्ज है। कई आघातों के बाद भी संस्कृति के प्रवाह को कोई रोक नहीं सका। ऋग्वेद में कहा है कि 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' अर्थात् उस एक प्रभु को विद्वान लोग अनेक नामों से पुकारते हैं। इसलिए कई पंच स प्रदाय विकसित हुए। भारत भूमि पर पैदा हुए सभी पंथ-संप्रदाय ने इस भारतभूमि की वंदना माता के रूप में की है। 'माताभूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या' भूमि मेरी माता है और मैं इस मातृभूमि का पुत्र हूँ। भारतभूमि पर पनपे जितने पंथ-संप्रदाय और उपासना पद्धति है, उनके सभी अनुयायी भारत को मातृभूमि मानते हैं। सिख पंथ के गुरुओं ने न केवल हिन्दू धर्म संस्कृति की रक्षा की, बल्कि गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविन्द आदि ने बलिदान भी दिया। जिस पंथ भी उसी सनातन हिन्दू संस्कृति का अनुयायी है। जब पाकिस्तान बना, तब मुस्लिमों ने हिन्दू-सिखों को ही निशाना बनाया। हिन्दू-सिखों के बीच रक्त संबंध है, 1983-84 में पाकिस्तान की साजिश के द्वारा हिन्दू-सिखो के बीच विभाजन की रेखा खींचने की कोशिश की। जिस तरह पानी में लकड़ी मारने से पानी अलग नहीं हो सकता।
विडंबना यह रही सिखों की न केवल धार्मिक भावना को आहत किया गया, वरन् उनको सत्ता पर काबिज कांग्रेस ने निशाना भी बनाया। इंदिराजी की हत्या उनके दो सुरक्षा गार्डों ने की। चूंकि वे सिख थे, इसलिए कांग्रेस ने पूरी सिख कौम को निशाना बनाया, तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिख विरोधी दंगों की आग को भड़काया। जब निर्दोष सिखों को मारा जा रहा था, उनकी स पत्ति को आग के हवाले किया जा रहा था, प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति का दायित्व था कि दंगों पर नियंत्रण रखने की कार्यवाही करते, लेकिन राजीव गांधी ने सिख विरोधी दंगे को और भड़काने के लिए कहा कि 'जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती में कंपन होता है।' यह कथन दूरदर्शन से प्रसारित हुआ। इसके बाद दिल्ली, कानपुर आदि शहरों में नरसंहार जैसी स्थिति पैदा हो गई। करीब तीन हजार सिखों की हत्या कर दी गई और उनकी स पत्ति को नष्ट किया गया, लूटपाट हुई, सिखों की हत्या के लिए दंगाई को भड़काने में कांग्रेसी नेता एच.एल. भगत, जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और कमलनाथ की प्रमुख भूमिका रही। इन्दौर में भी दंगे की आग भड़की। कांग्रेसियों ने सिखों के लकड़ी के पीठों में आग लगा दी। सिखों की दुकानों को भी आग की भेंट चढ़ा दिया।
यह कलम इन्दौर में भड़के सिख विरोधई दंगों की प्रत्यक्षदर्शी है। कांग्रेसी नेता ललित जैन के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने इन्दौर की शान राजबाड़े में आग लगा दी। जब इन्दौर जल रहा था, आग की ऊंची लपटे उठ रही थी, उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह इन्दौर आए, जब उनको दंगों के बारे में पूछा गया तो उनका उत्तर था मैं क्या कर सकता हूँ? यदि प्रदेश का मुख्यमंत्री ऐसी बातें कहे तो यही कहा जा सकता है कि या तो दंगे सरकार के नियंत्रण के बाहर थे, या कांग्रेसी दंगाइयों को रोकने में सरकार भी पंगू थी। इतिहास में पहली बार सत्ता पर काबिज कांग्रेसियों द्वारा आयोजित ये सिख विरोधी दंगे थे। हालत यह थी कि प्रेस का पलेक्स पास वाले गुरुद्वारे के सेवादार को दंगाइयों ने आग में डालने की कोशिश की, वह जोर-जोर से सहायता के लिए चिल्ला रहा था। इमली साहेब गुरुद्वारा में पुलिस ने अंदर घुसकर वहां के सेवादारों एवं अन्य पर लाठियां बरसाई। पुलिस को निर्देशित कर रहे थे, तत्कालीन कलेक्टर अजीत जोगी। मारो सालो को ये इंदिराजी के हत्यारे हैं। सिखों पर अत्याचार करने के लिए उन्हें पुरस्कृत कर अर्जुन सिंह ने राज्यसभा का सदस्य बना दिया। इसी प्रकार का पुरस्कार एच.एल. भगत, सज्जन कुमार, टाइटलर और कमलनाथ को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। कमलनाथ को पहले पंजाब का प्रभार दिया गया। वहां के सिखों ने इनका विरोध किया और अब वे म.प्र. के मुख्यमंत्री है।
जिस तरह दंगों के जिम्मेदार कांग्रेसियों को पुरस्कृत किया, इससे यही जाहिर होता है कि कांग्रेसियों द्वारा प्रायोजित सिख विरोधी दंगों के लिए न कांग्रेस गंभीर थी, न उन्हें किसी प्रकार का पश्चाताप था। 'हुआ तो हुआ' ये शब्द पहले से ही कांग्रेसियों के दिलोदिमाग में है। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के गुरु एवं कांग्रेस के रणनीतिकर सेम पित्रोदा से भी जब 1984 के बारे में पूछा गया तो उनके मुँह से भी यही शब्द निकले कि 'हुआ तो हुआ'। जब भाजपा ने सेम पित्रोदा के मुँह से निकले शब्दों को झपटकर इसे चुनावी मु्ददा बनाया, सिखों के पित्रोदा के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे।
चूंकि छठे चरण होने के पहले सेम पित्रोदा के मुँह से निकले शब्द से राजनीतिक हलचल तेज हुई तो कांग्रेस को लगा कि हरियाणा, दिल्ली, पंजाब के चुनाव में कांग्रेस के लिए पित्रोदा का शब्द घातक होगा तो पित्रोदा ने कहा कि मेरी हिन्दी ठीक नहीं होने से 'हुआ तो हुआ' शब्द निकल गए। कांग्रेस ने भी तुरंत पित्रोदा के बयान से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उनका निजी विचार है, कांग्रेस का कोई लेना-देना इससे नहीं है। मुँह से निकली बात उसी तरह होती है, जैसे धनुष से निकला तीर वापिस नहीं होता। कांग्रेस ने नाराज सिखों को मनाने के लिए डेमज कंट्रोल करना चाहा, लेकिन कांग्रेस को जो आघात होना था, वह हो गया। राजनीतिक पंडित कहने लगे कि पित्रोदा का कथन तीस सीटों के चुनाव को प्रभावित करेगा। कांग्रेस को जब किसी नेता के बयान से हानि होने की संभावना रहती है तो हायकमान यह कहकर उस कथन को नकार देता है कि यह उनके निजी विचार है न केवल पित्रोदा के बयान से बल्कि मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में कहा कि 'मोदी को हटाए बिना पाकिस्तान से संबंध नहीं सुधर सकते' जब कांग्रेस गठबंधन के नेता फारुख अब्दुल्ला ज मू-कश्मीर के लिए अलग प्रधानमंत्री होने की मांग करते हैं, जब टुकड़े गेंग के देश विरोधी नारो के साथ राहुल गांधी खड़े होते हैं, जब कांग्रेस के सचिव और भोपाल के कांग्रेस प्रत्याशी देश विरोधी गेंग के कन्हैया का चुनावी मंच पर गले लगाकर उसका स्वागत करते हैं, जब राहुल गांधी कहते हैं कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चौकीदार चोर है, इस बारे में कोर्ट की अवमानना का मामला चला तो राहुल की ओर से दो बार खेद व्यक्त किया गया।
राहुल के कथनों में न गंभीरता है और न सच्चाई रहती है। हाल ही में टाइम मेगजिन में प्रकाशित लेख में कहा गया कि भारत में नरेन्द्र मोदी के सामने कोई सशक्त विकल्प नहीं है। चाहे किसी भी दृष्टि से राजनीतिक स्थिति की समीक्षा की जाए, लेकिन इस सच्चाई को सभी स्वीकारते हैं कि नरेन्द्र मोदी के सामने कोई सशक्त विकल्प नहीं है। जनता मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए उमड़ पड़ती है। इन्दौर में नरेन्द्र मोदी की सभा बारह मई को आयोजित की। जब एरोड्रम से रवाना हुए तो सड़कों के दोनों ओर मोदी की झलक पाने के ळिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। मोदीजी की सभाओं में भी जनसैलाब उमड़ पड़ता है। राजनीति के पंडितों को यह सच्चाई स्वीकार कर लेना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी केवल भाजपा के नहीं वरन् जन नेता है। मोदी जी का यह कथन वास्तविक के नजदीक है कि 2014 का चुनाव भाजपा ने लड़ा था, लेकिन 2018 का चुनाव जनता लड़ रही है। अब हर सभा में मोदी 'हुआ तो हुआ' जुमले का उपयोग करते हैं। कांग्रेस की राज्य सरकारों की कर्जमाफी और बिजली कटौती पर भी उन्होंने कहा कि 'हुआ तो हुआ' शब्द द्वारा कांग्रेस पर कटाक्ष करते हैं। विडंबना यह है कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का न कोई चुनावी एजेंडा है और नीति है, अब कांग्रेस की राजनीति नरेन्द्र मोदी पर केन्द्रित हो गई है। कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल बचकानी बयानबाजी करते हैं, वे कांग्रेसी हो सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष लायक तो बिल्कुल भी नहीं है। मोदी सरकार ने 1984 के दंगाइयों के खिलाफ एसआईटी गठित कर कार्यवाही की है। अब सज्जन कुमार जेल में है, अन्य आरोपियों के खिलाफ भी शिकंजा कसा जा रहा है।
(लेखक – वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)