‘कव्वा’ चला हंस की चाल अपनी चाल भी ‘भूला’

भोपाल।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों भोपाल आए थे। उन्होंने यहां से वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर शुभारंभ किया था। वे जब ट्रेन में बैठे स्कूली छात्रों से बात कर रहे थे तब एक छात्र ने उनसे सवाल पूछा? यह नए नए आइडियाज आपके पास कहां से आते हैं? प्रधानमंत्री मुस्कुराए और अन्य बातें करने लगे। मतलब आइडियाज लोग साझा नहीं करते। देश का युवा नए आइडियाज और विजन चाहता है। जनता भी कमोबेश ऐसा ही चाहने लगी है। ऐसे में एक कहावत याद आती है कौवा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया। यह बात तब सार्थक होती हुई दिखी जब 2 अप्रैल को मध्य प्रदेश कांग्रेस कार्यालय भगवा झंडा और भगवा दुपट्टा से अच्छादित दिखाई दिया। मंदिर के पुजारियों का सम्मेलन कांग्रेस कार्यालय में जो होना था। लेकिन खबर यही गई कि वयोवृद्ध कमलनाथ केवल वही आईडियाज देना चाहते हैं जिन्हें भाजपा या तो आजमा चुकी है या घोषित कर चुकी है। आप लाडली बहना योजना को ही दीजिए, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्येक महीने बहनों को 1000 देने की घोषणा की। कमलनाथ ने तत्काल कह दिया हम 15 सौ देंगे। मतलब सरकारी खजाने से हाथ ढीला करने की बात तो की जा सकती है लेकिन अपना कोई विशिष्ट आईडिया देने की बात ध्यान में नहीं आती। यही सब कांग्रेस का भगवाकरण करने में भी हो रहा है। अपना कुछ सब चुराया माल?

एक बार डॉक्टर गौरीशंकर शेजवार ने जनशक्ति पार्टी से भाजपा में वापसी पर कहा था जब। दोनों ही पार्टियों में दीनदयाल उपाध्याय को माल्यार्पण करना है तब उस पार्टी में रहना ज्यादा मुनासिब है जिसके पास पण्डित जी को माल्यार्पण करने की सुविधाएं अधिक हो। उनका तात्पर्य चढक़र माल्यार्पण करने की ऊंचाई की सुविधा से था। यही बात कांग्रेस पर लागू होती है। जब हिंदुत्व और भगवाकरण की बात भाजपा बरसों से कर रही है तब मतदाता नई दुकान पर जाएगा या स्थाई शोरूम पर राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी कमलनाथ को इतना समझ में नहीं आता तब यही कहा जाएगा कि कव्वा हंस की चाल चलने की कोशिश कर रहा है और अपनी चाल भी भूल रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में भी कमलनाथ ने डेढ़ साल तक सरकार चलाई। एक भी ऐसा उदाहरण पेश करने की स्थिति नहीं बनती जो मध्यप्रदेश के लिए नया हो। यही राजनीतिक रूप से अनुभवी और वृद्ध सोच के साथ प्रतिस्पर्धा में युवा नेतृत्व की विजन के साथ होती है। मध्य प्रदेश का चुनावी रण सजता जा रहा है। अभी तक सत्ता का बंटवारा कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता रहा है। एक दौर था जब सत्ता का परिणाम कांग्रेस के पक्ष में जाता था। आज जनमानस भाजपा के साथ खड़ा हुआ दिखता है। 2023 के विधानसभा चुनाव को आजादी के अमृत काल की दिशा तय करने वाला चुनाव माना जा रहा है। राष्ट्र अपने आपको किधर ले जाना चाहता है यह इससे स्पष्ट होगा। ऐसे में भाजपा पूरी ताकत, सामर्थ्य और टीम के साथ लगी है। जबकि कांग्रेस कमलनाथ के बूढ़े कंधों के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढऩे का प्रयास कर रही है। परिणाम जनता क्या तय करेगी इसका आधा अनुमान इसी से लग जाता है? और ऐसे में भाजपा की पिच पर खेलने का प्रयास कमलनाथ करेंगे तो अंतिम सत्य भी समझने में अधिक मेहनत नहीं करना पड़ेगी।

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