‘करोड़’ का शतक लगाकर टीकाकरण का ‘जश्र’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। इसे संयोग नहीं कह सकते हैं कि जब सौ करोडवां टीका लग रहा हो तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अस्पताल में उपस्थित हों। जिसको टीका लग रहा हो वह उनके लोकसभा क्षेत्र बनारस का व्यक्ति हो। प्रधानमंत्री उससे बात करें और वह रिकार्ड बन जाये। यदि ऐसी रणनीति और उस रणनीति को मॉनिटर करने वाली टीम के प्रबंधन का यह परिणाम है। हां, स्वास्थ्य मंत्री कहीं पर भी दिखाई नहीं दिये। लेकिन राजनीतिक बात है। इसका मतलब होते हुए भी आज कोई मतलब नहीं है। देश की कुल 140 करोड़ की जनसंख्या में सौ करोड़ को डोज लग गया मतलब यह हुआ कि 75 प्रतिशत से अधिक पात्र लोगों को पहला और 35 प्रतिशत से अधिक लोगों को दोनों डोज लग गये हैं। याने कि हम सुरक्षा कवच तैयार करने की स्थिति में आ गये हैं। भारत जैसे विकासशील देश में इतना अधिक टीकाकरण एक उपलब्धी से कम नहीं है। इसमें गौरव इसी बात का है कि स्वदेशी टीका शामिल है। उसका कच्चा माल और उसका निर्माण करना भी उपलब्धी से कम नहीं है। यह देश की क्षमताओं के प्रदर्शन का दिन भी है। इस वैश्विक महामारी में बिना विचलित हुए देश के वैज्ञानिकों ने, स्वास्थ्य कर्मियों ने और सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने देश के ताकतवर होने का संदेश दिया है।

यह कम गौरव की बात नहीं है कि जिस देश में महामारी में जान देने वालों में वे लोग भी बड़ी संख्या में हैं जिनको सेवा के बदले जान देना पड़ी है। पुलिस प्रशासन के लोग हों या वे डाक्टर हों जिन्होंने महीनों घर का दरवाजा नहीं देखा और अपने प्राण दे दिये। इनकी चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश न्यौछावर होने वाले सेना के लोग ही नहीं होते अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों का भी जज्बा सेना के लोगों से कम नहीं है। उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया। भारत टीकाकरण में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक टीका लगाने वाला देश बन गया है। डब्लूटीओ से भारत की सराहना की है। सराहना का मतलब यह नहीं है कि यह कोई राजनीतिक सराहना है यह प्रबंधन की सराहना है। सरकार के समर्थन पर वैज्ञानिकों की महान उपलब्धि का दिन है उसकी सराहना है। जिस देश में टीका विदेशों पर निर्भर रहा करता था वह देश समय पर और विश्व से तालमेल करते हुए टीका इजाद भी करता है और विश्व के सामने रिकार्ड भी पेश करता है। पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण का अभियान जिस नियोजन और गति के साथ चला उसकी तारीफ विश्व कर रहा है।

यहां विपक्ष की बात करना भी जरूरी है। उसे उपलब्धि दिखाई तो देती है। वह इसकी तारीफ भी करता है लेकिन किन्तु-परन्तु के साथ। विपक्ष का कहना है कि कोरोना से हुई मौतों की चर्चा भी इसी के साथ की जाये। जबकि मौतों की दुखद घटना की चर्चा उपलब्धी पर कैसे संभव है? इसका मतलब यह हुआ कि विपक्ष नकारात्मकता के साथ आगे बढऩा चाहता है। जो किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने का सही मार्ग नहीं हो सकता है मोदी सरकार के बाद विपक्ष की नकारात्मकता ही मोदी सरकार के लिए ताकत है। इसलिए यह गौरव का क्षण भारत की जनता के लिए उत्सव से कम नहीं है। जहां एक महामारी से सुरक्षा कवच मिल रहा है। यह रोने और बुराई निकालने का दिन नहीं है यह तो उत्सव का दिन है।

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