‘करोड़’ का शतक लगाकर टीकाकरण का ‘जश्र’
यह कम गौरव की बात नहीं है कि जिस देश में महामारी में जान देने वालों में वे लोग भी बड़ी संख्या में हैं जिनको सेवा के बदले जान देना पड़ी है। पुलिस प्रशासन के लोग हों या वे डाक्टर हों जिन्होंने महीनों घर का दरवाजा नहीं देखा और अपने प्राण दे दिये। इनकी चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश न्यौछावर होने वाले सेना के लोग ही नहीं होते अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों का भी जज्बा सेना के लोगों से कम नहीं है। उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया। भारत टीकाकरण में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक टीका लगाने वाला देश बन गया है। डब्लूटीओ से भारत की सराहना की है। सराहना का मतलब यह नहीं है कि यह कोई राजनीतिक सराहना है यह प्रबंधन की सराहना है। सरकार के समर्थन पर वैज्ञानिकों की महान उपलब्धि का दिन है उसकी सराहना है। जिस देश में टीका विदेशों पर निर्भर रहा करता था वह देश समय पर और विश्व से तालमेल करते हुए टीका इजाद भी करता है और विश्व के सामने रिकार्ड भी पेश करता है। पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण का अभियान जिस नियोजन और गति के साथ चला उसकी तारीफ विश्व कर रहा है।
यहां विपक्ष की बात करना भी जरूरी है। उसे उपलब्धि दिखाई तो देती है। वह इसकी तारीफ भी करता है लेकिन किन्तु-परन्तु के साथ। विपक्ष का कहना है कि कोरोना से हुई मौतों की चर्चा भी इसी के साथ की जाये। जबकि मौतों की दुखद घटना की चर्चा उपलब्धी पर कैसे संभव है? इसका मतलब यह हुआ कि विपक्ष नकारात्मकता के साथ आगे बढऩा चाहता है। जो किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने का सही मार्ग नहीं हो सकता है मोदी सरकार के बाद विपक्ष की नकारात्मकता ही मोदी सरकार के लिए ताकत है। इसलिए यह गौरव का क्षण भारत की जनता के लिए उत्सव से कम नहीं है। जहां एक महामारी से सुरक्षा कवच मिल रहा है। यह रोने और बुराई निकालने का दिन नहीं है यह तो उत्सव का दिन है।