‘कमलनाथ’ कर रहे हैं अपने निर्णयों की ‘समीक्षा’
कांग्रेस को यह अधिकार है कि वह अगला विधानसभा का चुनाव किसके नेतृत्व में लड़े? लेकिन यह जरूर है कि जनता में अवधारणा किसके पक्ष में हैं। कांग्रेस में कमलनाथ जब 2018 के चुनाव में आये तो भरोसे के लायक नेता थे। किसान कर्जमाफी का चमकदार नारा उनके समर्थन में गया। लेकिन शिवराज की लोकप्रियता से कमलनाथ महज पांच सीट आगे ही निकल पाये। हालांकि इसे एक बड़ी जीत के रूप में पेश किया गया और यह भी बताने का प्रयास किया गया कि प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को नकार किया जबकि सीटों के अलावा वोट भाजपा को अधिक मिले थे। लेकिन कमलनाथ का ओरा इतना व्यापक बना दिया कि उन्हें अपने सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। मीडिया का दमन उन्होंने आपातकाल की भांति किया और घर-घर जांच बैठा दी थी। अपने नेताओं को भी नहीं बख्शा। परिणाम यह हुआ कि ज्योतिरादित्यि सिंधिया भाजपा में चले गये और नाथ सरकार का पतन हो गया। ऐसा नहीं है कि उन्होंने सरकार में ही मनमानी की, संगठन में भी वैसी ही मनमानी की है। अन्य विरोध गुटों को निपटाने का काम किया। अजय सिंह इसके बड़े उदाहरण हैं।
जब सबको यह पता है कि अजय सिंह का अविश्वास प्रस्ताव उप नेता प्रतिपक्ष राकेश चौधरी के भाजपा में चले जाने के कारण टायं-टायं फिश हुआ था तब अजय सिंह के क्षेत्र का प्रभारी राकेश चौधरी को बनाने का क्या औचित्य था? लेकिन सब लुटाकर होश में आये तो क्या आये? परन्तु राजनीति में यह भी कहा जाता है कि जब जागो तभी सबेरा। कमलनाथ ने अपने निर्णयों की समीक्षा करने का मानस बनाया है यह कांग्रेस के लिए अच्छी बात है। यदि युवाओं को कमान देने का क्रम शुरू कर दिया जाये तो पार्टी की तासीर बदलने के लिए उचित होगा। वैसे इस प्रकार के सुझाव मानना कमलनाथ के स्वभाव के विपरीत ही है।