‘कमलनाथ’ कर रहे हैं अपने निर्णयों की ‘समीक्षा’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ इन दिनों अपने निर्णयों की समीक्षा कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि उन्होंने पहले अजय सिंह राहुल भैया को कोई महत्व नहीं दिया था लेकिन अब उनसे बात करके चौधरी राकेश सिंह को हटाने का निर्णय ले लिया। हालांकि राकेश सिंह को मुरैना का प्रभार दिया गया है जो उनके जिले के करीब ही है। इसी प्रकार यह विचार भी सामने आ रहा है कि कांग्रेस की ओर से मीडिया फ्रेंडली माणक अग्रवाल का छह साल के लिए निलबंन भी समाप्त किया जा सकता है? कमलनाथ को सब लुटाकर समझ में आया है कि प्रदेश की राजनीति और केन्द्र में रहकर राजनीति का तरीका अलग-अलग होता है। केन्द्र में रहकर अपने गुट के लिए काम करना होता है लेकिन जब प्रदेश में सरकार चलाना हो या संगठन के सभी गुटों को साथ लेकर चलना होता है। मध्यप्रदेश आकर भी कमलनाथ गुटीय राजनीति ही करते रहे जिससे सिंधिया नाराज हुए और बमुश्किल मिली सरकार से हाथ धोना पड़ा। चलो होश में तो आ गये। जब जागो तभी सबेरा हो जाये तब क्या बुरा है? वैसे इन दिनों कांग्रेस ही अपने किए पर पछता रही है। पंजाब में जो किया वह और राजस्थान में सचिन पायलट को भाव देने की बात कमलनाथ की करनी से तालमेल कर रही है।

कांग्रेस को यह अधिकार है कि वह अगला विधानसभा का चुनाव किसके नेतृत्व में लड़े? लेकिन यह जरूर है कि जनता में अवधारणा किसके पक्ष में हैं। कांग्रेस में कमलनाथ जब 2018 के चुनाव में आये तो भरोसे के लायक नेता थे। किसान कर्जमाफी का चमकदार नारा उनके समर्थन में गया। लेकिन शिवराज की लोकप्रियता से कमलनाथ महज पांच सीट आगे ही निकल पाये। हालांकि इसे एक बड़ी जीत के रूप में पेश किया गया और यह भी बताने का प्रयास किया गया कि प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को नकार किया जबकि सीटों के अलावा वोट भाजपा को अधिक मिले थे। लेकिन कमलनाथ का ओरा इतना व्यापक बना दिया कि उन्हें अपने सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। मीडिया का दमन उन्होंने आपातकाल की भांति किया और घर-घर जांच बैठा दी थी। अपने नेताओं को भी नहीं बख्शा। परिणाम यह हुआ कि ज्योतिरादित्यि सिंधिया भाजपा में चले गये और नाथ सरकार का पतन हो गया। ऐसा नहीं है कि उन्होंने सरकार में ही मनमानी की, संगठन में भी वैसी ही मनमानी की है। अन्य विरोध गुटों को निपटाने का काम किया। अजय सिंह इसके बड़े उदाहरण हैं।

जब सबको यह पता है कि अजय सिंह का अविश्वास प्रस्ताव उप नेता प्रतिपक्ष राकेश चौधरी के भाजपा में चले जाने के कारण टायं-टायं फिश हुआ था तब अजय सिंह के क्षेत्र का प्रभारी राकेश चौधरी को बनाने का क्या औचित्य था? लेकिन सब लुटाकर होश में आये तो क्या आये? परन्तु राजनीति में यह भी कहा जाता है कि जब जागो तभी सबेरा। कमलनाथ ने अपने निर्णयों की समीक्षा करने का मानस बनाया है यह कांग्रेस के लिए अच्छी बात है। यदि युवाओं को कमान देने का क्रम शुरू कर दिया जाये तो पार्टी की तासीर बदलने के लिए उचित होगा। वैसे इस प्रकार के सुझाव मानना कमलनाथ के स्वभाव के विपरीत ही है।

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