‘कदम दर कदम’ गिर रही है नेताओं की ‘बोली’

भोपाल। आज तो मायावती ने हद कर दी। प्रधानमंत्री मंत्री पर हमला करते करते वह उनकी पत्नी पर ही उतर आई। उन्होंने कह दिया कि राजनीतिक फायदे के लिए मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ा है। कितने सहज भाव से बोल दिया। जबकि यह घटना है उस समय मोदी के राजनीति में आने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं थी। भाजपा नेताओं की पत्नियां क्या सोचती हैं इसकी जानकारी भी माया बहिन को है। जिनको न शादी का अनुभव है और न ही पत्नी की मानसिकता का उनकी ओर से आये ऐसे बयान को लेकर देश में बवाल कट रहा है। यूपी के चुनाव का अन्तिम चरण होना शेष है लगता है कि राजनीतिक संभावनाओं को बड़ा झटका लग गया। इसलिए भाषा पर नियंत्रण नहीं रहा है। यह भी दुखद है कि एक दलित महिला नेता जिस बयान पर भड़की हैं वह अलपर गेंग रेप के मामले में प्रधानमंत्री के कथन से जुड़ा है। मायावती देश की राजनीति की अकेली किरदार नहीं हैं जिनकी भाषा का नियंत्रण बिगड़ा है। राहुल गांधी क्या कम थे कि अब प्रियंका वाड्रा ने भी अपने बोल बिगाड़ लिये हैं। ममता ने हद ही कर दी। वे तो कुछ भी बोल रही हैं। मर्यादा और संविधान दोनों को तार-तार कर दिया गया है। उनके द्वारा। कितना चकित करने वाला है कि महिला नेत्रियों द्वारा जिस प्रकार की भाषा और आलोचना की जा रही है वह कद से परे हो रही है।
भारतीय राजनीति का यह सबसे निचला दौर है। मणिशंकर अय्यर एक ऐसा नाम रहा है जिसकी भाषा में मर्यादा का कोई पुट नहीं रहता। खुर्शीद मियां ने एक कदम आगे निकलने का प्रयास किया तो शशि थरूर ने उनका रास्ता रोक लिया। शशि थरूर को देश पढ़ा लिखा व्यक्ति मानता रहा है। जब प्रतिस्पर्धा पढ़े-लिखे व्यक्तियों में हो जाये तो क्या कहना है। सेम पित्रोदा ने पहले कांग्रेस की सेम कराई अब भी उनकी भाषा पर विवाद हो रहे हैं। यह पुरूष नेताओं की ओर से होड़ थी। लेकिन ममता बनर्जी ने जिस प्रकार की राजनीति बंगाल में शुरू की उसने देश की राजनीति को कलंकित किया। हिंसा चुनाव जीतने के लिए और विरोधियों को प्रचार करने से रोकने की बेशर्मी यहीं से शुरू हुई। पहले शिवराज को रोका अब अमित शाह तक बात पहुंच गई। बंगाल कह रहा है कि चुनाव किस दिशा में जा रहा है। यूपी में मोदी को रोकने के लिए महागठबंधन बनाया गया था। लेकिन मायावती की भाषा बता रही है कि मकसद पूरा नहीं हुआ। इसलिए मोदी को कोसने के साथ उनकी पत्नी को भी सामने रख दिया।
क्या लोकतंत्र में नेताओं की गजभर की जुबान इसी प्रकार से चलती रहेगी? क्या नेताओं पर बोलने की कोई सीमा नहीं होगी? क्या चुनाव का मतलब जीतना और कदम दर कदम गिरकर जितना ही मतलब यह जायेगा। इसलिए अब समय आ गया है कि इस प्रकार की राजनीति के खिलाफ बात शुरू की जाये। यदि प्रधानमंत्री अपने विरोधियों को कमर से नीचे वार करते हैं तब और जब विरोधी सत्ताधारी दल को हल्के शब्दों के साथ गरियाते हैं तब भी। सोशल मीडिया की भाषा नेताओं की जुबान पर आकर रूक जायेगी ऐसी स्थिति लोकतंत्र के लिए बेहतर नहीं होगी। मायावती ने महिला होकर भी ऐसा बयान दिया उससे देश शर्मसार है और महिलायें दुखी।

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