ओ दीदी यह गुस्सा क्यों आता है?
नई दिल्ली (विशेष प्रतिनिधि)। 2014 के आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे बड़े प्रचारक के रूप में जनता में स्वीकार्य हुए हैं। उनकी एक आम सभा के बाद क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलने लगता है। ऐसा प्रमाण अनेकों चुनावों से सामने आया है। वे अपने चुनाव प्रचार में एक ऐसा डायलॉग देते हैं जो आम आदमी की जुबान पर रहता है। इन दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव चल रहे हैं जिसमें सबसे खास चुनाव पश्चिमी बंगाल में हो रहा है। विधानसभा में 3 सीटों का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय जनता पार्टी वहां सरकार बनाने की उम्मीद पाले हुए हैं। इस उम्मीद के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है। मोदी भी वहां अजब कमाल कर रहे हैं। उनका एक डायलॉग काफी प्रसिद्धि पा रहा है और बंगाल के जन-जन की जुबान पर रहा है, ओ दीदी… इतना गुस्सा क्यों आता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार चुनाव में पश्चिमी बंगाल में स्वयं को केंद्रित कर रखा है। हालांकि वे उन पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में भी जा रहे हैं। लेकिन सर्वाधिक ध्यान बंगाल के चुनाव पर है। बंगाल राजनीतिक महत्व से भाजपा के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि देशभर में सक्रिय अधिकांश राजनीतिक दलों की ताकत और क्षमता को समाप्त करते हुए नरेंद्र मोदी अव्वल हो चुके हैं। केवल ममता बनर्जी पश्चिमी बंगाल में अजेय बनी हुई थी। जिसका तोड़ निकालने के लिए लोकसभा चुनाव में बंगाल को केंद्रित किया गया था, परिणाम निकला कि 18 लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा आदि शक्ति को प्राप्त कर चुकी थी। विधानसभा चुनाव में वहां सरकार बनाने का लक्ष्य लेकर सारे बड़े नेता लगातार प्रचार में लगे हुए हैं। नरेंद्र मोदी की सभाओं में उमड़ रही भीड़, अमित शाह के रोड शो में लोगों का हुजूम और फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती का जोर शोर से प्रचार करना तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है। ऐसे में नरेंद्र मोदी का जबरदस्त डायलॉग आम जनता की जुबान पर चढ़ गया है। परिणाम नंदीग्राम में ममता बनर्जी की बौखलाहट के रूप में सामने आया है।
केंद्र सरकार के द्वारा दी जाने वाली सहायताओं को नकारना, गरीब व्यक्ति और किसान के लिए मिलने वाली राहत उन तक नहीं पहुंचने देना, स्वास्थ्य और बीमा संबंधी योजनाओं का राज्य में क्रियान्वयन न होना इस चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी के गले उलझता दिख रहा है। पहले जनमानस बटा हुआ दिखता था। लेकिन दो चरण के मतदान के बाद भाजपा का नेतृत्व अपनी जीत के दावे ममता दीदी के दावों से अधिक कर रहा है। जिससे चुनाव अनुमान लगाने वाले अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अधिक प्रचार और रैलियां करना बंगाल के कितना हित में होगा और भाजपा सरकार बनाने के कितना करीब आ पाएगी यह 2 मई को समझ में आ जाएगा। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि 10 वर्ष के ममता बनर्जी राज का जनता के सामने सबसे कठिन परीक्षा का यह दौर है।