‘उज्जैन’ तक कैसे पहुंच गई पाक समर्थन की ‘आंच’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। जब कुछ लोग यह कहते हैं कि इन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए तब आलोचना करने वाले सामने आ जाते हैं। यह आलोचना तार्किक भी लगती है क्योंकि भारत के नागरिकों कों पाक भेजने की बात क्यों की जाना चाहिए? लेकिन जब भारत के किसी भी हिस्से में पाकिस्तान का समर्थन करने वाले मौजूद हों तब कई बार लगता है कि ऐसे तत्वों को या तो भारत विरोध के लिए दंड दिया जाना चाहिए या फिर उन्हें पाक जाने का रास्ता दे दिया जाना चाहिए। अभी तक कश्मीर में ऐसे नारे गूंजते थे यह पता था। उत्तर प्रदेश के उन मुस्लिम बाहुल क्षेत्रों में इन नारों की यदाकदा आवाज आती थी। लेकिन बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में इस प्रकार के नारे सुने जाने का अर्थ बहुत ही गंभीर है। यह भी उतना ही सच है कि पाकिस्तान भेजने की बात पर आग बबूला होने वाले समूहों से तो इस प्रकार के नारों का विरोध करने की उम्मीद नहीं है फिर तो उन लोगों से ही अपेक्षा की जाएगी जो उन्हें पाक भेजने की बात करते हैं। हालांकि उज्जैन पुलिस ने ऐसे 23 लोगों को चिन्हित करके 7 को गिरफ्तार कर लिया है और सभी के खिलाफ देशद्रोह का मामला भी दर्ज लिया है। अब न्यायिक प्रक्रिया में ऐसे तत्वों को किस प्रकार की सजा मिलती है इस पर नजर रहेगी।
बात अधिक पुरानी नहीं है। उज्जैन को लेकर एक समाचार छपा है कि कुछ लोगों ने एक आयोजन में पाक जिंदाबाद के नारे लगाए। स्वभाविक है कि ऐसे लोग मुस्लिम समुदाय के ही हैं। गीता कालोनी में बड़े साहब के दर्शन करने के लिए मोर्रहम के आयोजन के तहत जुटे थे। यहां पुलिस की पर्याप्त व्यवस्था थी ही। बड़े प्रशासिनक अधिकारी भी मौजूद थे। हडकंप मचा लेकिन चिन्ता इस बात की है कि यह जहर इतना गहरा है। उच्चाधिकारियों के सामने ही शत्रु देश के लिए नारेबाजी होने लग गई। 23 के खिलाफ मुकदमा और सात लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। विषय मुकदमा  दर्ज करने और गिरफ्तार करने का नहीं है सवाल यह है कि आखिर आजादी के 75वें वर्ष में महाकाल की पवित्र नगरी में यह अपवित्र मानसिकता जिंदा कैसे है? विभाजन की विभीषिका दिवस की आलोचना करने वाले तत्व इस बात का कोई जवाब देंगे कि आखिर यह कौन सी मानसिकता है जिसमें आज भी शत्रु देश के प्रति प्यार के भाव हैं। मध्यप्रदेश का यह अंचल पहले से ही सिम्मी जैसे आतंकी संगठन का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। एक धार्मिक आयोजन में पाक के प्रति प्यार दिखाने की मानसिकता का इस प्रकार से खुलकर सामने आने का मतलब जरूर समझना चाहिए।
इन दिनों तालिबान की चर्चा बहुत है। कुछ खास लोग अपनी 'जात' दिखाने में लगे हैं। उनको हवालात नहीं मिली तब इस प्रकार के तत्व समर्थन में आते दिखाई दे रहे हैं। यह अनुशासनहीनता नहीं है बल्कि देश के प्रति विद्वेष है। क्या हम इस वाक्य पर विचार नहीं कर सकते हैं कि आजादी के वक्त देशप्रेम का बहाना लेकर रूके मुस्लिम नेता किसी मकसद ने रूके थे? वह मकसद इस प्रकार के तत्वों के माध्यम से दिखाई देता है। हामिद अंसानी हों या मुनव्वर राणा कितने ही पढ़े लिखे और चर्चित चेहरे हों मानसिकता तो इन नारे लगाने वालों के समान ही है। लेकिन चिंता इस बात पर व्यक्त करना है कि यह आंच उज्जैन तक आई कैसे?
 

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