‘आयुर्वेद’ इतना कमजोर नहीं है कि दे दी जाये ‘चुनौती’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। सबसे पहले यह याद रखना होगा कि देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बाजार पद दबा था। आज कोलगेट जैसे सर्वस्वीकार्य पेस्ट को भी खुद को आयुर्वेदिक बताना पड़ रहा है। यह भी याद रखना होगा कि जिस योग को करने से व्यक्ति को पिछड़ापन और दकियानूसी होने का भय होता था वचह आज विश्व की धरोहर मानकर अपनाया जा रहा है। और तो और हिन्दूओं की संपत्ति मानकर उसे अन्य मजहब के लोग नहीं अपनाते थे वे भी आज इसे सेहत का संरक्षक मानकर कर रहे हैं। जिन घरों में तुलसी रखने से धार्मिक परहेज था वे आज उसे अपने यहां स्थान दे रहे हैं। केवल दवा के कारण और उसके आयुर्वेदिक महत्व के कारण। इसलिए व्यवसाय में अंधा हुआ एलोपेथिक दवा बाजार बाबा रामदेव को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है तब उसे यह याद रखना होगा कि यह चुनौती बाबा रामदेव को नहीं है यह आयुर्वेद को चुनौती है जिसकी विश्वसनीयता हजारों वर्षों से है। जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। अन्यथा कोरोना का ईलाज करते-करते रंग बिरंगे फंगस का प्रतिकूल प्रभाव मानव समाज के लिए परेशानी और मौतों का कारण बन रहा है। बाजार समर्थक डब्लूएचओ उसका कोई जवाब नहीं दे पा रहा है। दे भी कैसे क्योंकि वह तो स्वास्थ्य संगठन ही दवाई को लाभकारी बनाने के लिए है।

कोरोना में दवाओं का बाजार किस प्रकार से सन्तुलित हो इसकी चिन्ता अधिक करने वाला डब्लूएचओ आज आयुर्वेद को चुनौती देने की स्थिति में आ गया यह समझने वाली बात होगी? दवाओं की बिक्री बढ़े इसके लिए आये दिन मानकों को बदलने का प्रयास करने वाली इस संस्था ने तो सबसे पहले चीन का साथ दिया था। जबकि आयुर्वेद का महाभारत काल में जिस प्रकार का प्रयोग देखा गया कि वह दिन भर के लिए फिर से युद्ध के लिए घायलों को लेप से तैयार कर देता था। यह फिल्मांकन में कुछ अधिक कर दिया गया होगा लेकिन बिलकुल ही नहीं था ऐसा नहीं कहा जा सकता है। आयुर्वेद पूर्ण विज्ञान के आधार पर है और उसका विपरीत असर नहीं है। अन्य पैथियों में भी विपरीत असर का डर नहीं दिखाया जाता है। एलोपैथी में तो साफ दिखाई दे रहा है। महामारी की दवाओं का बार-बार बदला गया और जिस दवा का असर कोरोना के लिए बताया गया उसने दूसरी महामारी को जन्म दे दिया। ऐसी स्थिति में बाबा रामदेव पर निशाना साधने वालों को अपने घर में झांकने का प्रयास करना चाहिए। यह बहुत जरूरी और स्वास्थ्य के लिए हितकर है।

भारतीय विचार हो, संस्कृति हो या आयुर्वेद सबकी आलोचना करने में कुछ विशेष आनंद आता है। कुछ तत्व इसी काम में लगे हैं। वे बाबा रामदेव की आलोचना करने के परिणाम में यह भूल जाते हैं कि यहां एक व्यक्ति की आलोचना न होकर उस विचार व इतिहास की आलोचना है जिसका कोई तोड़ नहीं है। फिर भी जब बाबा रामदेव योग को स्थापित करने के लिए विश्व का झुका सकते हैं जब बहुराष्ट्रीय कंपंनियों के बड़े बजट के बाद भी उनसे टकरा सकते हैं तब फार्मा उद्योग के एकाधिकार की चुनौती भी स्वीकार कर सकते हैं। इस चुनौती में देश का वह समर्थक साथ होगा जिसको अपने विचार, देश का आयुर्वेद पर विश्वास है।

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