‘आयुर्वेद’ इतना कमजोर नहीं है कि दे दी जाये ‘चुनौती’
कोरोना में दवाओं का बाजार किस प्रकार से सन्तुलित हो इसकी चिन्ता अधिक करने वाला डब्लूएचओ आज आयुर्वेद को चुनौती देने की स्थिति में आ गया यह समझने वाली बात होगी? दवाओं की बिक्री बढ़े इसके लिए आये दिन मानकों को बदलने का प्रयास करने वाली इस संस्था ने तो सबसे पहले चीन का साथ दिया था। जबकि आयुर्वेद का महाभारत काल में जिस प्रकार का प्रयोग देखा गया कि वह दिन भर के लिए फिर से युद्ध के लिए घायलों को लेप से तैयार कर देता था। यह फिल्मांकन में कुछ अधिक कर दिया गया होगा लेकिन बिलकुल ही नहीं था ऐसा नहीं कहा जा सकता है। आयुर्वेद पूर्ण विज्ञान के आधार पर है और उसका विपरीत असर नहीं है। अन्य पैथियों में भी विपरीत असर का डर नहीं दिखाया जाता है। एलोपैथी में तो साफ दिखाई दे रहा है। महामारी की दवाओं का बार-बार बदला गया और जिस दवा का असर कोरोना के लिए बताया गया उसने दूसरी महामारी को जन्म दे दिया। ऐसी स्थिति में बाबा रामदेव पर निशाना साधने वालों को अपने घर में झांकने का प्रयास करना चाहिए। यह बहुत जरूरी और स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
भारतीय विचार हो, संस्कृति हो या आयुर्वेद सबकी आलोचना करने में कुछ विशेष आनंद आता है। कुछ तत्व इसी काम में लगे हैं। वे बाबा रामदेव की आलोचना करने के परिणाम में यह भूल जाते हैं कि यहां एक व्यक्ति की आलोचना न होकर उस विचार व इतिहास की आलोचना है जिसका कोई तोड़ नहीं है। फिर भी जब बाबा रामदेव योग को स्थापित करने के लिए विश्व का झुका सकते हैं जब बहुराष्ट्रीय कंपंनियों के बड़े बजट के बाद भी उनसे टकरा सकते हैं तब फार्मा उद्योग के एकाधिकार की चुनौती भी स्वीकार कर सकते हैं। इस चुनौती में देश का वह समर्थक साथ होगा जिसको अपने विचार, देश का आयुर्वेद पर विश्वास है।