‘आपदा’ में अवसर या आपदा में ‘आलोचना’
पिछले दिनों से देश के नेतागण यह मांग कर रहे हैं कि वैक्सीन मामले में आयु सीमा का बंधन हटा लेना चाहिए। यह 130 करोड़ का देश है। जिसमें एक साथ इतनी व्यवस्था करना किसी भी स्वरूप में संभव नहीं है। पहले साठ साल और गंभीर बीमारों का रास्ता खोला गया। उपलब्धता सुधरने पर यह आयु 45 साल कर दी गई। अब जब विश्व की अन्य वैक्सीन आयात का रास्ता खुल गया और भारत में बड़ी संख्या में वैक्सीन लग गई तब मतदान की आयु को आधार मान लिया गया। एक बड़ा निर्णय यह भी हुआ है कि वैक्सीन का सरकारीकरण करने की बजाये उसे बाजार के लिए भी खोल दिया जायेगा? मतलब बाजार में भी वैक्सीन उपलब्ध रहेगी। जिसको सीधे लगवाना है वह सीधे भी लगवाये और बाजार में जाकर लगवाये तो बाजार भी खुला है। सरकार ने मूल्य नियंत्रण का अपना अधिकार सुरक्षित रखा है। इसमें राहुल गांधी की मांग को प्रधानमंत्री ने स्वीकार कर लिया यह प्रचारित किया जा रहा है। यह भी खुशी की बात है कि विपक्ष के नेता इसी बात से खुश हैं। वे सरकार के कदमताल के साथ चाहे न हों लेकिन वे उसमें अपनी उपलब्धि तो देख ही रहे हैं।
दिन भर आलोचना करके प्रधानमंत्री को आइना दिखाने की बात करने वाले विशेष प्रकार के समूह को जनमानस की स्थिति का भी आंकलन करना चाहिए। व्यवस्थाओं मांग और व्यवस्था की आपूर्ति की तुलना में सब देखना चाहिए कि जिस गति से संक्रमित आये हैं क्या उसका अनुमान लगाया जा सकता था? पूर्वानुमान भी इतनी तेज फैलने के नहीं लग सकते थे। फिर भी आपदा में अवसर देखने वाले मुनाफाखोरी करने लग गये और आपदा में आलोचना करने वाले टवीट करने लग गये। जिनको व्यवस्थांए सुधारना हैं वे उसे सुधारने के लिए उपाय तलाशने में लग गये। यही भारत की राजनीति का अन्तर है और यह समीक्षकों की सोच को भी दर्शाता है।