‘अवधारणा’ बनाने का है अनेखा यह ‘खेला’

भोपाल (सुरेश शर्मा)। राजनीति अवधारणों का खेल है। जिस भी नेता के बारे में जो अवधारणा बन जाये वही उसके बारे में सोच

(सुरेश शर्मा)

बनती है। दिग्विजय सिंह जब भी बोलेंगे उनकी बात का संघ के साथ संबंध पहले झटके में खोजा जाने लग जायेगा। उसके बाद उन्हें हिन्दू विरोधी दृष्टिकोण से देखा जायेगा। राहुल गांधी जब बोलेंगे तब कांग्रेस की विचारधारा की आवाज के रूप में कम उन्हें मोदी विरोधी के रिूप में अधिक देखा जाता है। यदि हिन्दू विरोधी किसी नेता के खिलाफ पक्ष जानने के लिए किसी की बाइट की जरूरत होगी तो केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का नाम सबसे पहले आयेगा? यह सबको पता है कि किस प्रकार की खबर चाहिए तो किस नेता का बयान अच्छा है और कौन नेता बोल रहा है तो उसको किस प्रकार से पेश करना है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार में मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर वैचारिक रूप से संघ के बहुत करीब हैं। उनकी सोच प्रखर राष्ट्रवादी की है। वे अपनी बात को प्राचीन भारतीय विचारों में लपेट कर कहने का साहस रखती हैं। लेकिन जब भी बोलती हैं तब उनकी बात को पेश करने की अपनी अवधारणा बन गई है। उसे ऐसे पेश किया जाता है जैसे वे विवाद की बात कर रही हैं। यह मीडिया में उनके प्रति अवधारणा बनने का प्रमाण है।

खंडवा भाजपा कार्यालय में सेल्फी को लेकर उनकी बात को चटकारे लेकर छापा गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी इसे दिखाया गया होगा। लेकिन जब समाचार पूरा पढ़ते हैं तब शीर्षक में अवधारणा दिखाई दे जाती है। समाचार बनाते समय शीर्षक बनाते वक्त लिखा गया है कि सेल्फी खिंचवाने के मंत्री जी सौ रुपये लेंगी? जबकि समाचार में विस्तार से लिखा हुआ है कि मंत्री ने सेल्फी लेने में अधिक समय खराब होने पर कहा कि यदि कार्यकर्ता उनके साथ सेल्फी लेता है तो उसे पार्टी में सौ रुपये जमा कराने होंगे। कोषाध्यक्ष उसका हिसाब रखेंगे और यह पैसा संगठन के काम आयेगा। कितना अन्तर है शीर्षक और खबर में। यह ऊषा ठाकुर को लेकर अपनी अवधारणा का परिणाम है कि उनकी बातों को प्रस्तुत करने का अंदाज बदल जाता है। वे कोरोना को लेकर भी अपने बयानों में खासी चर्चित रही हैं। वे मास्क न पहनने के बारे में कहती रही हैं कि वे शाकाहारी हैं लेकिन उन्हें साथ में यह भी कहना पड़ा कि उनका दुपट्टा ही मास्क का काम करता है। प्रधानमंत्री मोदी के अनेकों चित्र होडिंग पर लगे हैं जिनमें वे मास्क की बजाए गमछा ही उपयोग करते हैं। इसका मतलब यह कैसे निकाल लिया जायेगा कि मोदी का गमछा तो उपयोगी लेकिन सुश्री ठाकुर का दुपट्टा अनपुयोगी?

इस प्रकार की अवधारणों का राजनीति में बड़ा प्रभाव पड़ता है। ऊषा ठाकुर की राजनीति का आधार ही इंदौर में उनका हिन्दूत्ववादी होना है। वे अपनी बात कहने में दिमाग की बजाए दिल का अधिक उपयोग करती हैं। यह इंदौर के लोगों का पसंद है। जिस महू विधानसभा सीट का ऊषा जी प्रतिनिधित्व करती हैं वह कांग्रेस नेता रहे अन्तर सिंह दरबार की अजेय सीट रही है उसका मिथक कैलाश विजयवर्गीय ने तोड़ा था अब वहां से सुश्री ठाकुर विधायक हैं यह कोई कम बात नहीं है। वैसे भी अब इन अवधारणाओं का असर किस प्रकार से पड़ता है यह देखने वाली बात होगी।

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