अपने-अपने कार्यकर्ताओं पर डोरे डाल रहे हैं भाजपा और कांग्रेस
भोपाल (विशेष प्रतिनिधि)। एक लोकसभा और तीन विधानसभा के उपचुनाव सामने है। कुछ दिनों बाद नगरीय निकाय चुनाव की कराने की तैयारी चल रही है। ऐसे में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां अपनी सेना को सुसज्जित करने का प्रयास कर रही है। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को फिर से युद्ध कौशल का प्रशिक्षण देने के लिए अपनी प्रशिक्षण परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी तर्ज पर कांग्रेसी भी बैठकों का मैराथन करके अपने कार्यकर्ताओं को और प्रमुख नेताओं को सक्रिय करने का यत्न कर रही है। कौन पार्टी अपना कार्यकर्ता खड़ा कर पाती है यह इन दिनों बड़े राजनीतिक विश्लेषण की बात है?
पिछले दिनों मध्य प्रदेश भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक संपन्न हुई थी। इसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे। जिसमें संगठन को सक्रिय करने की बड़ी योजना शामिल थी। हालांकि पार्टी नेतृत्व जिलों की बैठक संपन्न नहीं करा पाया। इसका प्रमुख कारण अभी तक कई जिला इकाइयों का गठन नहीं होना है। राजधानी भोपाल सहित कई प्रमुख जिले आपसी समन्वय न बन पाने के कारण अपने न तो पदाधिकारियों की घोषणा कर पाए हैं और ना ही कार्यसमिति की। इसलिए इन जिलों में बैठक करना संभव नहीं हो पा रही है। इसके अलावा राष्ट्रीय, प्रादेशिक और जिले स्तर पर प्रशिक्षण दिए जाने के कार्यक्रम भी शुरू हो गए हैं। धीरे-धीरे भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके चार उपचुनाव तथा निकाय चुनाव के लिए तैयार कर रही है। इसके लिए विभिन्न टोलियां तैयार कर ली गई है। प्रदेश मुख्यालय ने परिपत्र जारी करके इन बैठकों के आयोजन का निर्देश भी दे दिया है। यह माना जा रहा है कि प्रशिक्षण प्राप्त करके प्रशिक्षण देने की क्षमता वाले नेता भी इन आयोजनों में फिर से प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए पुराने कांग्रेसी संगठन और सरकार में अपेक्षा से अधिक भागीदारी प्राप्त कर चुके हैं या करने जा रहे हैं इसकी निराशा और नाराजगी से अपने कार्यकर्ताओं को निकालने के लिए प्रशिक्षण शिविरों में अधिक ध्यान रहेगा। देखने वाली बात यह रहेगी कि भाजपा नेतृत्व इन परिस्थितियों से अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी किस प्रकार दूर कर पाता है?
कांग्रेस इस समय दो परिस्थितियों से जूझ रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ भाजपा की तरह कांग्रेस में भी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने की परंपरा डालना चाहते हैं। वे मैराथन बैठकें करके अपने नेताओं और प्रमुख कार्यकर्ताओं को किस प्रकार संगठन चलाया जाए और किस प्रकार उपचुनाव तथा निकाय के चुनाव में विजय प्राप्त की जाए इसका प्रशिक्षण देंगे। दिल्ली से भी कुछ नेता आकर अपने अनुभवों को प्रदेश के नेतृत्व के सामने साझा कर सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस के सामने दूसरी चुनौती यह है कि यह चर्चा तेजी से चल रही है कि कमलनाथ को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। हालांकि इसमें समय और परिस्थितियों को कसौटी पर कसा जा रहा है। इस चर्चा में प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ की पकड़ को तो कमजोर किया ही है, नेताओं के मन में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने की इच्छा भी जागृत किया है। जिसके कारण प्रशिक्षण शिविरों का कांग्रेस कितना लाभ उठा पाएगी इस पर सवाल जरूर उठ सकता है। लेकिन यह अच्छी बात है कि कांग्रेस भाजपा की तर्ज पर अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके अनुशासित करने का प्रयास कर रही है। देखने वाली बात यह रहेगी कि अपनी सरकार को गिराने के दुख का बदला क्या कांग्रेस इन उपचुनाव में जीत और निकाय चुनाव में खासी बढ़त प्राप्त करके ले सकती है?