‘अन्ना’ आन्दोलन से निकली थी यही राजनीतिक ‘संस्कृति’
अन्ना आन्दोलन से जन्म लेकर एक राजनीतिक पार्टी बनाई थी। उस समय उनका मूल नारा था कि वे देश को नई राजनीतिक संस्कृति देने जा रहे हैं। जो विकास पर आधारित होगी। जिसमें न तो धर्म का उपयोग किया जायेगा और न ही झूठे वादे किये जायेंगे। यह राजनीतिक संस्कृति देश के नव उत्थान का आधार होगी। इससे प्रभावित होकर दिल्ली जो देश की राजधानी है केजरीवाल का झौली सीटों से भर दी और उन्होंने इतिहास कायम कर दिया। पन्द्रह साल की लोकप्रिय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनाव में पराजित कर दिया। आम आदमी पार्टी की झाडू लेकर गधा-घोड़ा भी चुनाव जीत गया। जिस प्रकार आपातकाल के बाद जनता पार्टी की जीत हुई थी ठीक उसी प्रकार से। केजरीवाल ने उस संस्कृति को कितना आगे बढ़ाया या कितना जीवित रखा इस पर कभी बहस नहीं हुई। लेकिन वे दूसरे चुनाव में भी कमोवेश उसी तर्ज पर चुनाव जीते और विधायकों की संख्या भी बहुत अधिक कम नहीं हुई। लेकिन यहां राजनीतिक संस्कृति की बात गायब हो गई और गरीबों को छोड़ो अन्य के लिए भी मुफ्तखोरी ने चुनावी जीत दिलाई। यही फार्मूला अब वे पंजाब में आजमाना चाह रहे हैं।
देश की राजनीतिक संस्कृति धर्म के आधार पर वोट कबाडऩा और लोगों को मुफ्तखोरी में पनपाना और मरने तक मुफ्त सुविधा देना है। किसी भी दल को देख लीजिए होड़ मची हुई है। सबसे पहला उदाहरण आरक्षण है। बाबा साहब अम्बेडकर ने इसे दस वर्ष तक देना स्वीकारा था जो उसी कौम से आते थे। लेकिन मुफ्तखोरी का सबसे बड़ा उदाहरण आरक्षण बन गया। मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त में रोजगार, मुफ्त में पद्दोन्नति और मुफ्त में ही सबकुछ। मतलब जो व्यक्ति मुफ्त में सब पायेगा उसका बौद्धिक स्तर सुधरेगा कैसे हो सकता है। चाहिए यह था कि प्रतिस्पर्धा में तैयार करने के लिए अतिरिक्त सुविधा देना चाहिए थी ताकि देश में समानता बन जाये और प्रतिभाओं का दमन नहीं करना पड़े। खैर राजनीति ही ऐसी है। उस समय आस जगी थी जब केजरीवाल ने यही नारा दिया था। लेकिन उन्होंने भी मुस्लिम वोट बैंक के सामने चादर फैलाना शुरू कर दिया। गरीब की आड़ लेकर मुफ्तखोरी को बढ़ावा दिया। उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए वे सभी हथकंडे अपनाये जो भारतीय राजनीति में हर दिन आजमाये जाते रहे हैं। अब पंजाब में मुफ्त बिजली देने का नारा देकर वहां भी ललचाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है।
लोग विश्वास भी कर लेंगे। किसी को यह याद नहीं होगा कि जिसने दिल्ली में फर्जी आधार पर आक्सीजन मांग कर बारह प्रान्तों के लोगों की जान जोखिम में डाल दी हो वह विश्वास के लायक है? सच में देश को एक नई राजनीतिक संस्कृति की जरूरत है? जिसमें सब मिल सकें। लेकिन यह संभव कैसे हो सवाल यही बड़ा है। क्या कोई त्याग, तपस्या और धर्य की प्रतिमूर्ति देश को मिलेगा? कुछ लोगों का मत है 21 साल से गालियां सुनने वाला मोदी धर्य का पर्याय है। जिसका परिवार अपनी आय से चल रहा है वह त्याग उसमें है। जिसने देश के लिए निर्णय करने में त्याग किया वह मोदी है तो। लेकिन इससे सहमति और असहमति दोनों हैं।