अगली जीत के लिए हारे हुये योद्धा को कमान सौंपेगी कांग्रेस

भोपाल। [विशेष प्रतिनिधि] लोकसभा चुनाव के परिणाम से कांग्रेस हलकान है। केन्द्र में राहुल गांधी अमेठी जैसी परम्परागत सीट से चुनाव हार गये तो मध्यप्रदेश में गुना जैसा अजेय सीट से महल हार गया। ज्योतिराििदत्य सिंधिया अपने अदने से सहयोगी रहे नेता से चुनाव हार गये। कमलनाथ स्वयं मुख्यमंत्री बनकर चुनाव मैदान में थे इसलिए कोई परेशानी नहीं रही लेकिन बेटे को जिताने में सांस फूल गई। फूली सांस को राहुल गांधी ने देख लिया औा पुत्र मोह का आरोप जड़ दिया। गनीमत यह है कि पुत्र चुनाव जीत गया। इसी प्रकार के फार्मूले में अशोक गहलोत का बेटा हार गया। कांग्रेस के सामने अब अगले चुनाव जीतने का डर है। इसके लिए नये सेनापति की जरूरत है। लेकिन कोई भी ऐसा यौद्धा नहीं है जो चुनाव जीता हुआ हो। हारे योद्धा को कमान देना कांग्रेस की विवशता है।
कमलनाथ मुख्यमंत्री भी हैं और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी। लोकसभा चुनाव तक पार्टी उनके अनुभव का लाभ लेना चाहती थी। यह लाभ नहीं मिल पाया। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक सीट ही कांग्रेस के खाते में गई और वह भी कमलनाथ के पुत्र की। दिग्गज नेताओं को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। दिग्विजय सिंह, सिंधिया, अजय सिंह, अरूण यादव, भूरिया सहित वे सभी नाम चुनाव हार गये जिन्हें पार्टी की मुखिया बनाया जा सकता है। इसलिए यह माना जा रहा है कि किसी हारे हुये योद्धा को ही कांग्रेस कमान दे सकती है।
राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि विधानसभा में भाजपा से आगे निकलने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में ऐसी हारी है कि उसका कार्यकर्ता संभालने की स्थिति में ही नहीं आयेगा कि चार प्रकार के चुनाव सामने आ जायेंगे। सहकारिता, मंडी, नगरीय निकाय और पंचायत राज के चुनाव सामने हैं। कांग्रेस को इन चुनावों में सरकार जैसी पार्टी जैसा व्यवहार करना है। लेकिन पार्टी नेतृत्व की परेशानी यह है कि वह सरकार बचाने में लगती है तो जनता में प्रभाव कम हो जाता है और जनता में प्रभाव बनाने का प्रयास करती है तब सरकार की चूलें हिलने लग जाती हैं। इसलिए सरकार को बचाने और चुनाव में जीतने के का कोई एक साथ फार्मूला खोजा जा रहा है। समय से पहले विधायक दल की बैठक बुलाने का कारण भी यही बताया जा रहा है कि हार के कारणों का पता करें और विधायकों की संख्या का आंकलन भी कर लें।
भाजपा अंगुली दिखाती है सांस कांग्रेस की फूलती है
लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व परिणाम भाजपा के पक्ष में आने के बाद से उन राज्यों में सरकारों को खुद-ब-खुद खतरा दिख रहा है जो अल्पमत की सरकारें हैं या फिर जोड़तोड़ के कारण बनी हैं। कर्नाटक की सरकार में सबसे बड़ी पार्टी की सरकार सफल नही होने पर तीसरे नम्बर की पार्टी का मुख्यमंत्री है इसलिए उसे खुद ही डर लग रहा है। यही हाल मध्यप्रदेश का है। पार्टी तो सबसे बड़ी है लेकिन इतनी भी बड़ी नहीं है कि सरकार को स्थिर रख पाये। पांच विधायकों का अन्तर है। इसलिए भाजपा जब भी अंगुली खड़ा करती है तब सरकार की सांस फूलना शुरू हो जाती है। चुनाव परिणाम आते ही भाजपा ने कह दिया कि सरकार अल्पमत में है फिर पीछे हट गये लेकिन कमलनाथ के सिपहसालार रोज कह रहे हैं कि हम बहुमत सिद्ध करने के लिए तैयार हैं। भाजपा कामंूह बंद करने के लिए फ्लोर टेस्ट करवा देना चाहिए। बजट सत्र सामने आ रहा है सरकार के रोज बनेगी और रोज गिरने की संभावना रहेगी। लेकिन भाजपा की अंगुली उठती है तभी कांग्रेस हांफने लग जाती है।

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